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खंक ३
मिपरी पए॥
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ब्रह्मा श्रखंगरे ॥माण्॥१॥ ब्रह्मानो काश्यपी ऋषि जात, काश्यपथी काश्यपी कृषि संघा
तरे ॥ मा० ॥ काश्यप ऋषि पतनी हु तेर, दीतीए जाया दैत्य दाणव ढेररे ॥ मा०॥ N॥ १ए ॥ श्रादितिथी उपन्या अपार, तेत्रीश क्रोम देव सुत साररे ॥ माण॥ कहुए
जाया नवकुली नाग, वनिता सुत गरुम विषनागरे ॥ मा० ॥ २० ॥ सुप्रनाए पुत्री जणी सात, नवसे नवाणुं नदी विख्यातरे ॥ मा ॥ एकीए जणीया छीपज सात, साते सागर जाया एकीए रातरे ॥ मा ॥ २१॥ एकीए जाया पर्वत वृंद, सेना ब्राह्मणी जणीया चंदरे ॥ मा० ॥ एकीए सहुए सूरज जाया, तारा ग्रह नक्षत्र बहु। मायारे ॥ मा० ॥ २२ ॥ हव्यकाए जाया ऋषिवर स्वाम, अव्याशी सहस्र तणां जे नामरे ॥ मा० ॥ खडनेत्री जणीया चारे खाण, खेद अंग जरा अदबुद जाणरे ॥ माम् ॥ ३॥ चार खाणथी चोराशी लाख, जीव योनिनी उत्पत्ति नाखरे ॥ मा० ॥ |बेंतालीश लाख थलचर जोय, जलचर नजचर बाकी होयरे ॥ मा० ॥ २४ ॥ जीव थकी उपन्या जुग चार, कृत त्रिता छापर कलि साररे ॥ मा० ॥ एणी परे सृष्टि । तणो बे लाग, मिथ्यादृष्टि कह्यो विजागरे ॥ मा० ॥ २५ ॥ खंम त्रीजानी सातमी
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