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धर्मपरी०
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गाम ॥ डूध लइने नामो गयोजी, दरिनुं उचरे नाम ॥ सु० ॥ १९ ॥ दूध लइने मुख आागलेजी, कहे पीयो नारायण देव || पाषाण बिंब बोले नहींजी, बालक रडे पडे खेव ॥ सू० ॥ २० ॥ तव दरिने दया उपनीज | दूध पीधुं ततकाल ॥ पहेले खंडे ढाल तेरमीज, नेमविजय सुविसाल ॥ सू० ॥ २१ ॥
डुदा.
सुचिकार श्रीपुरजी, तेनो सुत ततकाल ॥ तुख्या नारायण नामाने, जगति जलो ए बाल ॥१॥ एक वार नामो जमे, जमतां चिंते ताम ॥ श्रावे नारायण इण समे, जाखरी श्रपुं राम ॥ २ ॥ ज्ञानदृष्टे करी जोइयुं, (नामो) जोये मादरी वाट ॥ श्वान रूप धरी श्रावीया, दीठो जाखर घाट ॥ ३ ॥ दोय चार मुखमां ग्रही, नाग श्वान तिये रूप ॥ नामो पुंठे धाइ, यही लेउं हरि भूप ॥४॥ श्राघा जइ रूप फेरव्युं, नामो गयो निज गेह ॥ नामो घर बांये एकलो, विष्णु श्राव्या स्वयं देद ॥ ५ ॥ गोविंदे घर बांइट, (घर) बेंडी नामे की ॥ पोली लइ हरि दुखीया, पोहोता वैकुंठ सिद्ध ॥ ६ ॥ विप्र सुणो तमे बुद्धिबला, नीच करम कीया देव ॥ पुराण वचन लोक वातथी, सत्य के जूनुं देव ॥ ७ ॥ विष्णु उदर मांदी जला, चौद भुवन रहे थेट ॥ बलि राजाए
खंग १
॥ २२