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करूं, अहनीश सेतुं पायरे ॥ सा० ॥ ३ ॥ रावणे मूक्यो विनायक जणी, रासन चरावो | देवरे ॥ सा० ॥ काठी जारो लेता यावजो, दातर कोहाडो देवरे ॥ सा० ॥ ४ ॥ रासन चारे रावण तथा नीच करम करे नित्यरे ॥ सा० ॥ जारो लेइ मस्तक प्रते, रासन हांके एणी रीतरे ॥ सा० ॥ ५॥ खम कापी जारो करे, छाणउपकतो लीए शिशरे ॥ सा० ॥ आणी चारे रासन जणी, करम जोगवे निशदिशरे ॥ सा० ॥ ६ ॥ रासन राख्या नवी रहे, वाडि कांखरनी करे तामरे ॥ सा० ॥ विधनराज करणी करे, पाप तणुं फल मरे ॥ सा० ॥ ७ ॥ करम करे देव एहवां, तो अमने श्यो दोषरे ॥ सा० ॥ विचार संखेपे करी कह्यो, ब्राह्मण राखजो संतोषरे ॥ सा० ॥८॥ मनोवेग तव बोलीयो, सांजलो वाव वातरे ॥ सा० ॥ खोटुं के में साधुं कयुं, उत्तर देजो चातरे ॥ | सा० ॥ ए ॥ विप्र वचन वलतां जण्या, सत्य वचन तुमे जायरे ॥ सा० ॥ वेद पुराणे एम कयुं, ते अम केम लोपायरे ॥ सा० ॥ ४० ॥ मित्र वदन अवलोकीयुं, सामुं जोयुं तामरे ॥ सा० ॥ समस्या करीने यवीया, पूरवले वन ठामरे ॥ सा० ॥ ११ ॥ पवनवेग प्रतिबोधवा, मनोवेग कड़े साररे ॥ सा० ॥ पूर्वापर विरोध नहीं, जैनसूत्रे सुविचा