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गर्मपरीमो आवे सोश॥मा॥५॥ मा॥ ब्रह्माए बथाव्यु लिंग, हस्त धरी उंचो चढे॥
माखम INमा०॥ लिंग वलगी चाख्यो कान, वेगे पाताले हरी जडे ॥ मा० ॥५॥मा०॥ जातां । ०॥
थयो घणो काल, लिंग अंत न पावीयो ॥ माण॥ मा० ॥ नारायण थाक्यो ताम, पाडगे वली हर कने श्रावीयो ॥ मा०॥६॥मा०॥ विष्णु कहे सुण ईश, लिंग पार में नविलह्यो ॥मा०॥ मा० ॥ दुःखी हुवो ब्रह्मा वाट, मुख फीको करीने रह्यो ॥ मा० ॥७॥ मा०॥ खसी पड्यु केवडी पत्र, लिंग उपरथी तले यदा ॥ मा ॥ माण पडतो काल्यो कहे ब्रह्म, कूकी साख देजो केवमी तदा ॥मा॥७॥ मा॥ बेहु श्राव्या ईश्वर पास, ब्रह्मा कहे हुं ठेठे गयो॥मा॥ मा॥ लिंग उपरथी एह, केवमी पाणी साचो जयो॥ मा० ॥ ए॥ मा० ॥ कहे केवडी साची वात, ब्रह्मा आव्यो तुज लगे ॥मा ॥ मा॥ केवमी कहे सुण खाम, ब्रह्मा वचन नवि मगे ॥ मा७ ॥ १० ॥ माम् ॥झाने जो करी श, खोटुंजाणीश्रापी केवडी ॥मा॥ मा॥ म चमीश माहरे लिंग, कांटा होजो तुज तेवडीमा॥११॥मा॥खोटाबोलो ब्रह्मा तुंनांम, सृष्टि न होशे तुज तणी॥ मा॥मा॥ सत्यवादी गोविंद, सृष्टि सहुनो ए धणी ॥मा १२ ॥मा ॥ पवनवेन विचारी जोय, मलती वात एके नहीं ॥ मा ॥ माण ॥ परीक्षा करी धरो चित्त, सुधुं समकित मन