________________
अशुज टव्यां मुज कर्महे ॥ सा ॥सु०॥१७॥श्री हीरविजय सूरि तणो, शुजविजय शिष्य तेहहे ॥ सा॥ नाव विजय शिष्य तेहना, सिजिविजय शिष्य एहहे ॥ सा॥ सु॥१०॥ रूपविजय रंगे करी, कृष्ण विजय कर जोमहे ॥ सा ॥ रंगविजय कविराजनी, नावे कोश होडहे ॥ सा ॥ सु० ॥ १५ ॥ खंग बीजो पूरो थयो, ढाल बावीशे सारहे ॥ सा ॥ नेमविजयने नित्य प्रत्ये, जगमांहीं जयकारहे॥ सा ॥ सु० ॥ २० ॥
॥ इति श्री हरिहरब्रह्मार्कचंध्यमसुरेंजसुरगुरु देवादि
दूषणनामा द्वितीयोऽधिकारः॥
॥॥६
॥
-