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परीकीधो सचेत तेणी वार, मांड्यो करवा पोकाररे ॥ मा०॥३॥ हैयुं दले माथु कूटे खंग ? IN हाहा दैव शुं चुंटेरे ॥ मा॥ एहवी नहीं मले नारी, घरनुं सुख गयो हुँ हारीरे॥ मा
॥४॥ मस्तक मूढना केश, लोच करे गेडी वेशरे॥ मा०॥सुनी धार विबुटी, पडी। धाम जाणे लीधो खुंटीरे॥माण ॥५॥जगनदत्ता सुण नारी, मुज मूकी गइ निरधारीरे॥y मा॥ तुंप्राणप्रिया गुण जारी,मुज दर्शन दे एक वारीरे॥मा॥६॥ तुज चंवदन हरीलंक, कनक कलश कुच शंकरे ॥मा॥ तुज विण दीसुं हुं रंक, मुज मेली गइ विण वंकरे ॥ मा० ॥ ॥ अगनि देव तें शुं कीधुं, मुज रामा प्राण हरी लीधुंरे ॥मा॥ अरे पापी तुं दैव ब्रह्म, हत्या कीधी तें सैवरे॥ मा० ॥ ॥ मुज हरि हर ब्रह्मा रुट्या, सघला पड्या ते जूगरे ॥ मा०॥ करता गोत्रजनी सेव, ते नागे गुरुकुल देवरे ॥ माण ॥ ए॥ विद्यारथी तुं पवित्र, परफुःख भंजननो मित्ररे॥मा॥हाहा हिजवर पुत्र, किम रहेशे तुज घर सूत्ररे॥ मा० ॥ १० ॥ ब्रह्मचारी तुधीर, परस्त्रीनो सहोदर वीररे॥ मा० ॥तुं . |सुतो घंटला तीर, तुज लाहे बढ्युं शरीररे ॥ मा० ॥ ११॥ मरजो ए ब्राह्मण पापी,
|॥१३॥ मुज तेमी गया मीसापीरे ॥ मा० ॥ यज्ञ कारण सहु व्यापी, मुज घरधरणी जस्मापीरे॥y मा०॥ १२॥ तिणे अवसर ब्राह्मण एक, श्रावी कहे वातो विवेकरे॥मा०॥ नारी कारण