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________________ तिहां देखीयो, मुनिवर साधुनो रूपरे ॥ना जाणीने मोह व्यापीयो, उसीसे मस्तक धरी नूपरे ॥ सा० ॥१३॥ वीरमती राणी हेठी उतरी, बांधवने कर्यो रे प्रणामरे ॥ थालिंगन देश घणुं नीमीयो, पोहोंचो ना आपणे धामरे ॥ सा ॥ १४ ॥ क्रौच | राजा तिहां तव जागीयो, राणी किहां गई कहो बाजरे ॥ पुष्ट मंत्री तिहां तव एम जणे, जु जु राणीने महाराजरे ॥ सा ॥ १५ ॥ खमणो वलग्यो तुम राणी जणी, हस्ते करी देखाडे तेहरे ॥क्रौच राजाए कोपी धनुष्य धर्यु, बाणे नेद्यो मुनिवर देहरे । ॥ सा ॥ १६ ॥ विषम बाण लाग्युं मुनिने घj, नूमि पडीयो मुनिवर खामरे ॥ राग केष मोह मान परिहरी, मन धरी जिनवरना गुणग्रामरे ॥ १७ ॥ वीरमती ते देखी उःख जयो, नाइ तणो उपन्यो सोगरे ॥ विलाप करे अति घणुं वलवले, धाजो सहु श्रावक लोकरे ॥ सा ॥१०॥ बहा खंगनी नवमी ढालमां, सुणजो सहुको बाल-| गोपालरे ॥ रंगविजयनो शिष्य एणी परे नणे, नेमविजयने हर्ष उजमालसा॥ उदा. वीरमति विलाप करे अति, मुख करे हाहाकार ॥ बांधव ए मुज सोहामणो,
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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