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निज घर ले गयोरे, रात दिवस माणे जोग ॥ नारायणशुं नेह धरीरे, संसारनां सुख संजोग ॥ स० ॥ २६ ॥ मनोवेग बोले तिहांरे, जो जो ईश्वरनां काम ॥ पहेले खंडे अग्यारमीरे, नेमविजय कड़े ताम ॥ स० ॥ २७ ॥
डुदा.
ब्राह्मण सांजलजो तुमे, दरि रमे स्त्रीरूप ॥ नानां भूषण वस्त्र रस, चूश्रा चंदननो चूप ॥ १ ॥ फल तंबोल सुगंध बहु, वंदित विरोचन राय ॥ दास्य विलास रंग रोलमें, घणो काल एम जाय ॥२॥ रह्यो गर्न करमे करी, पंच मासे घरणी कीध ॥ नाति जाति संतोषीने, गर्न महोत्सव सिध ॥ ३ ॥ एक दिन नारद घ्यावीया, दीगे नारी स्वरूप ॥ ज्ञान बले विचारीयुं, दामोदर एद रूप ॥ ४ ॥ श्रानंद यो रुषिने घणो, कौतुक जोशुं एड् ॥ ब्रह्मा शंकर शोधे सहु, जाइ कदेशुं तेट् ॥ ५ ॥ सहस्र श्रव्याशी कृषीश्वरे, शोध्या विष्णु सोय ॥ सकल देव जोया सदु, (पण ) केशव गोत न कोय ॥ ६ ॥ नारद तिदांथी चालीया, (कृषि) देवने कीध प्रणाम ॥ दामोदर देखामीए, | जेम सरे तुमारुं काम ॥ ७ ॥ ब्रह्मादिकने तेमीया, विरोचन पटसाल ॥ ऋषि देव नेला मल्या, जोवा काज ततकाल ॥ ८॥ घरमाथी राय नी कली, ब्रह्मादिकने पाय ॥ कहो वा मि