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________________ धर्मपरी० ॥ १३२ ॥ बिंब देखीए, पमजणे शत उपवास ॥ स० ॥ सहस्र फल विलेपने कह्यो, फुलमालाए लाख फल तास ॥ स० सं० ॥ १० ॥ अनंत फल गीत नृत्यथी, एहवां फल सुणी शेठे तास ॥ स० ॥ नीम धार्यो त्रण कालनो, जिनपूजा विना उपवास ॥ स० सं० ॥ ११ ॥ श्राव्यो छव एहवे, कौमुदी कौतिककार ॥ स० ॥ सुंदर वेश सजी सवे, नगर बहार यावे नर नार ॥ स० सं० ॥ १२ ॥ खेलो हसो मन खांतशुं, हुकम करे राजान ॥ स० ॥ कार्तिक पुनेमने दिने, गाउँ वजार्ज तान ॥ स० सं० ॥ ॥ १३ ॥ बार वरसने अंतरे, महो वजाने एम ॥ स० ॥ श्रईदास शेठ मन चिंतवे, मुज व्रत रहेशे हवे केम ॥ स० सं० ॥ १४ ॥ उंडुं मनमां श्रालोचीने, श्राव्यो शेव नृपने पासे ॥ स० ॥ मोती श्रगल मूकीने, उजो अरज करे उल्लासे ॥ स० सं० ॥ ॥ १५ ॥ में लीधुं बे व्रत नेम जे, ते तुमे जाणो बो स्वाम ॥ स० ॥ याज श्रादेश दुवो एसो, केवुं करवुं हवे काम ॥ स० सं० ॥ १६ ॥ धन देइ धन धन कही, ए तो प्रशंसे राज ॥ स० ॥ जिनधरमी जयवंत तुं, करो जइ घरनां काज ॥ स० सं० ॥ १७ ॥ चोकी मेली चिहुं दसे, ए तो सुट रह्या सावधान ॥ स० ॥ रात पकी राजा कहे, ए तो सांजल तुं परधान ॥ स० सं० ॥ १८ ॥ पहेली ढाल खंग खंग अ ॥ १३२ ।
SR No.034172
Book TitleDharmpariksha Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages336
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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