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खंग?
नाखे अति घणुं विप्र, रेवणी करे धुम्र गोटे विप्र॥एहवा उपसर्ग करी संतापे, तोही
मुनि चुके नहीं जापे ॥ ७ ॥ अवर वात कहुँ एक एहवी, पवनवेग सुणोतुमे जेहवी y 6 मेघरथ विष्णुकुमार, गिरि उपर तप करे अपार ॥ ए ॥ श्रवण नक्षत्र श्राकाशे कंपे, विष्णु मुनि गुरु प्रते जपे । कहो स्वामि नक्षत्र कंपे, कुण कारण एह अजंपे ॥ १० ॥ अवधिज्ञानी मुनि एम बोले, गजपुरने नहीं कोई तोले ॥ तिहां मुनि बेग ध्यान थापी, उपसर्ग करे विप्र पापी ॥ ११॥ तिण कारण कंपे श्रवण, विष्णु कहे उपाय कवण ॥ मेघरथ मुनि जणे शिष्य, वच्छ ब्राह्मणने देशुं जीख ॥ १२ ॥ वैक्रियलबधि | करो सार, वामन रूप धारो निरधार ॥ मुनिवरनां जतन करो जाइ, वेगे करो एहनी | सजाय ॥ १३॥ फोरवी ततक्षण लवधि, उत्पत्ति जाए के उदधि ॥ गजपुर नगरमां आव्यो, पदमरथ रायने नमाव्यो ॥ १४ ॥ वर श्राप्यो हतो तमे तेहने, घणुं शुं कडं ना तुमने ॥ मुनिवरनो मांड्यो घात, थाशे तेहथी घणो उतपात ॥ १५ ॥ पदमरथ कहे सुणो नाश, वचन पाटुं श्रमे नवी था ॥ कोइ करो तमे उपाय, तेथी विघन सवे वली जाय ॥ १६ ॥ विष्णु चाल्यो मंगप देश, वामन विप्रनो धर्यो वेष ॥ दर्न पुर्वा जनो कंठ, पहेरी धोती ने हाथमें लंठ ॥ १७ ॥ वेदनी ध्वनि उचरे मुख, विष
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