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तुज घर कंतनेरे लाल, श्म कही गई निज गेह ॥ स ॥ सरल खनाव सुंदरी तणोरे| लाल, रसवती नीपाइ तेह ॥ स० ॥ सू० ॥५॥ माधव श्राव्यो कुरंगी घरेरे लाल, मोह धरी बेगे बार ॥ स० ॥ मधुर खरे सादज करेरे लाल, उत्तर दीयो कुरंगी| नार ॥ स० ॥ सू० ॥६॥ घणे दीवसे अमे श्रावीयारे लाल, (हवे) सर्या बेहुनां काज ॥ स० ॥ मनोहर तुं मुज कामनीरे लाल, बाहिर श्रावो तजी लाज ॥ स ॥ सू० ॥ ७॥ शब्द सुणी लोक बहु मल्यारे लाल, ( तेणे ) कडं कां पोकारो नार || सम्॥ सबल लंपट बपी रहीरे लाल, गली कीधी कोठे जार ॥ स० ॥ सू० ॥ माधव कहे जूठ कां लवोरे लाल, शीलवंती मुज एह ॥ स० ॥ मोह धरी घरमांक गयोरे लाल, पाय पमी मनावे तेह ॥ स ॥ सू० ॥ ए॥ हुँ नूख्यो नोजन दीयोरे| लाल, लाज न कीजे जरतार ॥ स ॥ कोप धरी कुरंगी जणेरे लाल, तुं मोटो उतार ॥ स० ॥ सू० ॥ १० ॥ सुंदरीशुं मोह तुज तणोरे लाल, जोजन रंधाव्युं ते त्यांहिं ॥ सण ॥ उठ जा घरमा तेह तणेरे लाल, पाखंड करी थाव्यो थांहीं ॥ स ॥ सू० ॥ ॥ ११ ॥ सोनपाल नंदन बोलीयोरे लाल, बापना प्रणमी पाय ॥ स ॥ मंदिर पधारो पिता आपणेरे लाल, रसोइ नीपाश् मुज माय ॥ स० ॥सू०॥१२॥ वयण सांजली तव ।