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धर्मपरी०
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बोले तव वाणी मनोवेग सांजलो, धर्म परीक्षा कीध नथी कांइ श्रमलो ॥ पूरण चोथो खंग ढाल अग्यारमी, श्रोता सुधड होये तो दिल तेहने रमी ॥ १५ ॥ ही रविजय सूरिराय तपगछनो धणी, अकबर शाह प्रतिबोधित अमार पमावी घणी ॥ शुभविजय तस शिष्य नाव विजय कवि, सिद्धिविजय तस शिष्य वात हुइ तेवी ॥ १६ ॥ रूपविजय रंग लाय कृष्ण विजय कहुं, रंगविजयने नित्य हुं प्रणिपति वहुं ॥ नेमविजय कहे एम ढाल ग्यारमी, पूरण चोथो खंक कर्यो ते सहुने गमी ॥ १७ ॥ इति धर्मपरीक्षा से मिथ्यातपुराणडूषणे मिथ्यामतध्वंसनो नामा चतुर्थोऽधिकारः
खंभ
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