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एरिया कमेटी सरसावा में, भी उन्हें बिना किसी शर्त के तुरन्त छोड़ देने के लिये हुक्क.म जिला से सिफारिश करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन चेयरमेन ने जिला कर्मचारियों की नाराजगी के भय से इस प्रस्ताव को कमेटी में पेश ही न होने दिया तो जिम्मेदार अफसरान तक आवाज पहुँचाने के लिये यही कारण लिखकर इन्होंने वाइस चेयरमैनी से त्याग पत्र दे दिया और टाउन मजिस्ट्रेट के कहने पर भी उसे वापिस न लेकर स्पष्ट कह दिया, “जब यहाँ मुझे जनता की माँग को अफसरों तक पहुँचाने का भी अवसर नहीं दिया जाता तो इस की कुर्सी से चिपटे रहने से क्या लाभ" ?
सहारनपुर जैसे बड़े शहर में जैन लायब्ररी की भारी कमी को अनुभव करते हुए श्री दिगम्बरदास ने ला० मोतीलाल गर्ग, ला० मनसुमरतदास बजाज और वा० सुखमालचन्द (हाल सुपरिटेण्डेण्ट आर्मी हेड कार्टर, नई देहली) के सहयोग से १० मई १९३१ को पब्लिक जैन लाइब्रेरी की नींव डाली और अपने प्रभाव से चन्दे तथा मासिक म्युनिसिपल इमदाद मंजूर कराकर उसे अपने पाँव पर इतनी मजबूती से खड़ा कर दिया कि वह आज तक जनता की सेवा भले प्रकार कर रही है ।
वीर-जयन्ती का उत्सव श्री मङ्गलकिरण मालिक मल्होपुर प्रेस, श्री नेमचन्द कोल, श्री रूपचन्द, प्रिंसिपल जैन कॉलेज तथा ला० जन्बूप्रसाद मुख्तार के उत्साह से और श्री ऋषभ-निर्वाण दिवस दयासिन्धु ला० जयचन्द भक्त तथा इनकी बाल-बोधिनी सभा द्वारा बड़े समारोह से मनाये जाते रहे हैं, परन्तु वीर-निर्वाण दिवस मनाने का कोई प्रबन्ध न था, जिसके कारण इन्होंने ला. उलफत. राय भक्त, बा. मोतीलाल मुन्सरिम जजी तथा ला. शिवप्रसाद चक्की वाले आदि अनेक सज्जनों के सहयोग से जैन प्रेम वर्द्धिनी सभा स्थापित की । हमें स्वयं कई बार इनके वीर निर्वाण उत्सव में शामिल होने तथा इसके मेम्बरान से मिलने
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