Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 1
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
तत्त्वार्थचिंतामणिः
तिस कारण हमने पहिले बहुत अच्छा कहा कि तत्वार्थ लोकवार्तिकशास्त्र के आदिमें प्रथम पर--अपर गुरुओंके प्रवाह का ध्यान करना ही कल्याणकारी है। क्योंकि वही उस शास्त्रकी सिद्धिका कारण है । इस प्रकार प्रधान प्रयोजनकी अपेक्षासे गुरुओंके ध्यानको ग्रंथ बनाने में कारण माना है दूसरे प्रकार गौणफलकी अपेक्षासे नहीं । यदि अन्ध बनानेमें प्रधानकारणके अतिरिक्त सामान्य कारणोंका विचार किया जाये तो पात्रदान, जिनपूजन आदिके समान मंगल करना, कायोत्सर्ग करना आदिका भी निकरण हम नहीं करते हैं । निष्कर्षार्थ यह निकला कि गुरु
ओंका ध्यान ग्रंथ करने आवश्यक कारण हैं और पात्रदान आदि अनियमरूपसे कारण है । फिर यहां दूसरी शंका उपस्थित होती है कि:
कथं पुनस्तत्वार्थः शास्त्रं तस्य श्लोकवार्तिकं वा, तयारूपानं वा येन तदारम्भ परमेष्ठिनामाध्यान विधीयत इति चेत् । तल्लक्षणयोगित्वात् ।
तत्वार्थसूत्रको और उसके ऊपर अनुष्टुभ् छन्दों में बनायी गयीं स्वामीजीकी वार्तिकोंको तथा उनका भी विवरण भाष्यरूप न्याख्यानको शास्त्रपना कैसे है ? जिससे कि उसके प्रारम्भमें परमेष्ठिओंका त्रियोगसे ध्यान किया जारहा है अर्थात् यदि इन तीनों को शास्त्रपना सिद्ध हो जावे, तब तो उन ग्रन्थों के आदिमें परमेष्ठियोंका ध्यान किया जावे । जबतक इनमें शास्त्रपना ही सिद्ध नहीं है, फिर व्यय ही शास्त्रों के कारण मिलाने की क्या आवश्यकता है ? (उतर ) यदि ऐसा कहोगे नो हम कहते हैं कि- उस शास्त्रका लक्षण सूत्र, व्याख्यान और भाष्यमें घटित होजाता है । अतः उक्त तीनों भी शास्त्र के लक्षणको धारनेसे शास्त्र हैं। .
वर्णात्मकं हि पदं, पदसमुदायविशेषः सूत्रं, सूत्रसमूहः प्रकरणं, प्रकरणसमितिराक्षिक, आहिकसंघातोऽध्यायः, अध्यायसम्रदायः शास्त्रमिति शास्खलक्षणम् । तच्च तत्वार्थस्य दशाध्यायीरूपस्यास्तीति शास्त्रं तत्वार्थः।
वर्गों की सुबन्त, तिङन्तस्वरूप एकताको पद कहते हैं । परस्पर आकांक्षा रखते हुए गंभीरार्थ प्रतिपादक पदों के निरपेक्ष समुदायको सूत्र कहते हैं। एक विषयको निरूपण करनेवाले कतिपय सूत्रों के समूहको प्रकरण कहते है। कतिपय विषयों के निरूपण करनेवाले प्रकरणों के समुदायको आहिक कहते हैं। यहां " अभि आइकं । एक दिनमें होनेवाला कार्य आहिक है । ऐसा यौगिक अर्थ अभी नहीं है । किंतु पूर्वोक्त पारिभाषिक अर्थ ही उपादेय है। यौगिकसे रुदि अर्थ बलवान् होता है । अनेक प्रकरणों के कथन करनेवाले आहिकोंके सम्मेलनको अध्याय कहते हैं। और अध्यायोंका समुदाय शास्त्र कहलाता है । इस प्रकार शास्त्रका लक्षण है । यह लक्षण दशअध्यायों के समाहाररूप तत्त्वार्थअन्धमें घट जाता है । इस लक्षणसे तत्वार्थसूत्र शास्त्र सिद्ध हुआ ।