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अविश्वास से व्यवहार न चोर विरह से स्नेह का नाश होता है।
दादा जिनदत्त सूरि प्रादि अनेक जैन मुनि पुंगवों ने किया है। श्री आनन्दघन जी, चिदानन्द जी की कृतियां इस बात का स्पष्ठ प्रमाण हैं । • यदि सच पूछा जाय तो हठयोग का सर्वथा निषेध करके जैनों के यहां से योगाभ्यास का प्रचार सर्वथा समाप्त हो गया है। आज जैनों में एक भी ऐसा योगी पुरुष देखने और सुनने में नहीं आता । जो हो ।
स्वरोदय ज्ञान समझने की प्रावश्यकता ____ इस विश्व में प्रकृति ने मानव को विशेष ज्ञान दिया है। इसके परिणाम स्वरूप उत्तम पुरुष भूत, भविष्यत, वर्तमान काल की बातें हस्तामलकवत् जान सकते हैं। यह बात सर्वविद्वद् जन विदित है। ज्योतिष, रमल आदि से काल ज्ञान मालूम हो सकता है परन्तु इससे भी सरल एक रीति काल-ज्ञान जानने की है; और वह है स्वरोदय ज्ञान । इससे बिना किन्हीं अन्य साधनों के मात्र नासिका पर अंगुली रख कर स्वर की गति से कालज्ञान, शुभाशभ आदि का ज्ञान की प्राप्ति होती है। शरीर की आरोग्यता में भी यह बहुत उपयोगी है । यह ज्ञान पूर्व काल के योगीश्वरों ने प्राप्त कर अनेक चमत्कारों से मानव समाज को चमत्कृत किया है । धर्म से विमुख प्राणियों को इसके द्वारा • धर्म में दृढ़ किया है आज मानव अपने प्रमादवश इस ज्ञान से वंचित रह कर
अंधे के समान विचरण कर रहा है। स्वरोदय का स्पष्ट अर्थ नासिका द्वारा निकलने वाले पवन की गतिविधियों का बोध है। इस शरीर में पांच प्रकार का पवन है। इसके निकलने के मुख्य दो रास्ते हैं। वे कैसे, किस-किस समय, किस-किस स्थान से निकले तो क्या हो ? उसका जो ज्ञान, वह स्वरोदय ज्ञान है।
स्थिर चित्त से एकांत में बैठ कर शुभ भावपूर्वक सद्गुरुदेव का स्मरण करके नाक में से निकलता हुआ स्वर देखे । पश्चात् इस स्वरोदय ज्ञान में बतलाई हुई विधि से बोध पाकर न्यायमार्ग से कार्य करें। ऐसा करने से यह स्वर ज्ञान सिद्ध होगा। इस ज्ञान का उपयोग निदित कार्यों में करने से उल्टा अनिष्ट परिणाम आता है। इस बात को विशेष रूप से लक्ष्य में रखें । विचार करने से ज्ञात होता है कि स्वरोदय की विद्या पवित्र और आत्मा का कल्याण
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