Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १ उद्देशक २ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - अब, दूसरा दर्शन, क्रियावादियों का है । कर्म की चिन्ता से रहित उन क्रियावादियों का दर्शन संसार को ही बढ़ाने वाला है ।
विवेचन - अब क्रियावादी के मत का कथन किया जाता है। क्रियावादी सिर्फ क्रिया से ही मोक्ष प्राप्त होना मानते हैं। किन्तु मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान एवं क्रिया दोनों से होती है। ज्ञान की उपेक्षा करने से ये एकान्त वादी हैं । इसलिये ये मिथ्या दृष्टि हैं। इनके १८० भेद होते हैं वे भेद २२ वीं गाथा के विवेचन में दे दिये गये हैं।
जाणं काएणऽणाउट्टी, अबुहो जं च हिंसइ । पुट्ठो संवेयइ परं, अवियत्तं खु सावज्जं ॥२५॥
कठिन शब्दार्थ - कारण - काया से, अणाउट्टी - अनाकुट्टी-जीव की हिंसा नहीं करना, अबुहो - अबुध-नहीं जानता हुआ, पुट्ठो - स्पर्श मात्र, संवेदइ - संवेदन करता है-फल भोगता है, अवियत्तं - अव्यक्त-अस्पष्ट, सावज - सावद्य।
भावार्थ - जो पुरुष क्रोधित होकर किसी प्राणी की मन से हिंसा करता है परन्तु शरीर से नहीं करता है तथा जो शरीर से हिंसा करता हुआ भी मन से हिंसा नहीं करता है वह केवल स्पर्श मात्र कर्मबन्ध को अनुभव करता है क्योंकि उक्त दोनों प्रकार के कर्मबन्ध स्पष्ट नहीं होते हैं ।
विवेचन - क्रियावादी ने चार प्रकार की हिंसा अव्यक्त-अस्पष्ट मानी है १. परिज्ञोपचित केवल मानसिक हिंसा, २. अविज्ञोपचित केवल कायिक हिंसा, ३. ईर्या पथ-जाने आने आदि में होने वाली हिंसा और ४. स्वप्नान्तिक-स्वप्न में की हुई हिंसा । ... संतिमे तओ आयाणा, जेहिं कीरइ पावगं ।
अभिकम्मा य पेसा य, मणसा अणुजाणिया ॥ २६॥
कठिन शब्दार्थ - संति - हैं, इमे - ये, तओ - तीन, आयाणा- आदान-कर्म बंध के कारण, जेहिं - जिन से, कीरइ - किया जाता है, पावगं - पाप कर्म, अभिकम्मा - आक्रमण करके, पेसा यभेज कर, मणसा - मन से, अणुजाणिया - अनुज्ञा दे कर।
भावार्थ - ये तीन कर्मबन्ध के कारण हैं जिनसे पापकर्म किया जाता है - किसी प्राणी को मारने के लिए स्वयं उस पर आक्रमण करना तथा नौकर आदि को भेज कर प्राणी का घात कराना एवं प्राणी को घात करने के लिए मन से अनुज्ञा देना ।
विवेचन - करना, कराना, अनुमोदन करना ये तीन कर्मबन्ध के कारण हैं। इनको मन, वचन, काया से गुणित करने पर नौ हो जाते हैं। इन नौ से ही कर्मबन्ध होता है।
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