Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ५. उद्देशक २
१५३
कठिन शब्दार्थ - उदरं - पेट को, विकत्तंति - फाडते हैं, खुरासिएहिं - छुरे और तलवार से, गिण्हित्तु - ग्रहण करके, वद्धं - वर्ध-चमडे को, थिरं - स्थिर, पिट्ठओ - पीठ की, उद्दरंतिउधेडते हैं ।
- भावार्थ - परमाधार्मिक, नैरयिक जीवों के हाथ पैर बाँध कर उस्तरा और तलवार आदि से उनका पेट फाड़ देते हैं तथा अज्ञानी नैरयिक जीव की देह को लाठी आदि के प्रहार से चूर चूर करके फिर उसे पकड़ कर उसके पीठ की चमड़ी उखाड़ लेते हैं।
बाहू पकत्तंति य मूलओ से, थूलं वियासं मुहे आडहति । रहंसि जुत्तं सरयंति बालं, आरुस्स विझंति तुदेण पिढे ॥ ३ ॥
कठिन शब्दार्थ - बाहू - भुजा को, पकत्तंति - काटते हैं, मूलओ - मूल से, वियासं - विकास-फाड़ कर, मुहे - मुख को, आडहति- जलाते हैं, रहंसि - रथ में, जुत्तं - जोत कर, आरुस्सकोप करके, विझंति - मारते हैं, तुदेण - चाबुक (कोड़ों) से, पिढे - पीठ पर ।।
भावार्थ - नरकपाल, नैरयिक जीव की भुजा को जड़ से काट लेते हैं तथा उनका मुख फाड़ कर उसमें तप्तलोह का गोला डालकर जलाते हैं । रथ में जोत कर चलाते हैं एवं एकान्त में ले जाकर उनके पूर्वकृत कर्म को याद कराते हैं तथा बिना कारण कोप करके चाबुक से उनकी पीठ पर मारते हैं ।
अयं व तत्तं जलियं सजोई, तऊवमं भूमि मणुक्कमंता । ते उज्झमाणा कलुणं थणंति, उसु-चोइया तत्त-जुगेसु जुत्ता ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - अयं - लोहे का, सजोइं - ज्योति सहित, तऊवमं - उपमा योग्य, अणुक्कर्मता - चलते हुए, उसुचोइया - बाण से मार कर प्रेरित किये हुए, तत्तजुगेसु - तप्त जुए में, जुत्ता - जोड़े हुएं । . . भावार्थ - तप्त लोह के गोले के समान जलती हुई ज्योति सहित भूमि में चलते हुए नैरयिक जीव जलते हुए करुण क्रन्दन करते हैं तथा बैल की तरह प्रतोद (चाबुक) मारकर प्रेरित किये हुए और तप्त जुए में जोडे हुए वे नैरयिक जीव रुदन करते हैं ।
बाला बला भूमि मणुक्कमंता, पविज्जलं लोहपहं च तत्तं । . जंसिऽभिदुग्गंसि पवण्जमाणा, पेसे व दंडेहि पुरा करेंति ।। ५ ॥
कठिन शब्दार्थ - पविजलं - रक्त और पीब से सनी हुई, लोहपहं - लोह पथ के समान, पवजमाणा - चलने के लिये प्रेरित किये हुए, पेसे व - प्रेष्यों (नौकरों) की तरह, दंडेहिं - दण्ड के द्वारा, पुरां करेंति - आगे चलाये जाते हैं।
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