Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ८
२०९ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - पमायं - प्रमाद को, कम्मं - कर्म, आहंसु - कहा है, अप्पमायं - अप्रमाद को, तब्भावादेसओ- सद्भाव की अपेक्षा से, बालं - बाल, पंडियं - पण्डित ।
भावार्थ - तीर्थंकरों ने प्रमाद को कर्म और अप्रमाद को अकर्म कहा है । अतः प्रमाद के होने से बाल वीर्य और अप्रमाद के होने से पण्डित वीर्य होता है ।
विवेचन - उपरोक्त गाथा में कारण में कार्य का उपचार करके कर्म को ही बाल वीर्य कहा है अब इस गाथा में कारण में कार्य का उपचार करके प्रमाद को ही कर्म रूप से बताया गया है धार्मिक कार्य को छोड़ कर पापकार्य में प्रवृत्त होना प्रमाद कहलाता है । प्रमाद के पांच भेद बतलाये गये हैं । यथा
मजं विसय कसाया, निदा विगहा य पञ्चमी भणिया । एए पञ्च पमाया, जीवं पाति संसारे ।।
अर्थ - शराब तमाखू आदि नशीले पदार्थों का सेवन करना, पांच इन्द्रियों के विषय में आसक्त होना, क्रोध आदि कषाय करना, नींद लेना और स्त्री कथा आदि विकथा करना । ये पांच प्रमाद हैं । इनका सेवन करना कर्म का कारण होने से इन पांच प्रमादों को कर्म कहा है और अप्रमाद को अकर्म कहा है. । प्रमाद के कारण जीव कर्म बांधता है इसी को बालवीर्य कहते हैं । प्रमाद रहित पुरुष के आचरण में कर्मबन्ध का अभाव होता है । इसलिये इसको पण्डितवीर्य कहते हैं । इनमें अभव्य जीवों का बालवीर्य अनादि और अनन्त होता है और भव्य जीवों का अनादि सान्त होता है तथा सादि सान्त भी होता है परन्तु पण्डित वीर्य सादि सान्त ही होता है । अतः ज्ञानी पुरुषों का कथन है कि वे पण्डित वीर्य में ही पुरुषार्थ करें।
सत्थमेगे.तु सिक्खंता, अतिवायाय. पाणिणं । एंगे मंते अहिजंति, पाणभूय-विहेडिणो ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - सत्थं - शस्त्र, सिक्खंता - सीखते हैं, अतिवायाय - मारने के लिये, मंते - मंत्रों का, अहिज्जति - अध्ययन करते हैं, पाणभूय विहेडिणो - प्राण-भूत को बाधा पहुंचाने वालेमारने वाले।
भावार्थ - कोई बालजीव, प्राणियों का नाश करने के लिये शस्त्र तथा धनुर्वेदादि शास्त्रों क अभ्यास करते हैं और कोई प्राणियों के विनाशक मन्त्रों का अध्ययन करते हैं।
विवेचन - इस गाथा का इस प्रकार भी अर्थ किया जाता है-कई व्यक्ति प्राणी-घात के लि शस्त्र विद्या सीखते हैं और कई व्यक्ति प्राण-भूतों को पराभूत-स्ववश करने के लिये मंत्र सीखते हैं धनुर्वेद कामशास्त्र आदि पापसूत्र है । इन्हें सीखना बालवीर्य है तथा जीव हिंसा के उपदेशक अथर्ववे.. -
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