Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 299
________________ श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000 किया है" यह कहकर ज्ञान के गर्व से गुरु का नाम छिपाते हैं। वे मिथ्याभाषणं करते हैं । वे साधु नहीं हैं, माया कपट करने वाले हैं। वे दो दोषों से दूषित होते हैं। जैसा कि कहा है - “पावं काऊण सयं अप्पाणं सुद्धमेव वाहरइ । २८६ 00000000 दुगु करेइ पावं बीयं बालस्स मंदत्तं ॥" अर्थात् - जो स्वयं पाप करके भी अपने को शुद्ध बतलाता है वह दुगुना पाप करता है। प्रथम यह है कि वह स्वयं असाधु है और दूसरा यह है कि वह अपने को साधु मानता है । इस प्रकार निह्नव पुरुष अपने गर्व के कारण सम्यक्त्व का भी नाश करते हैं और अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण भी करते रहेंगे। कोह होइ जयदृभासी, विसोहियं जे उ उदीरएज्जा । अंधे व से दंडपहं गहाय, अविओसिए धासइ पावकम्मी ॥ ५ ॥ कठिन शब्दार्थ - जगदृभासी दूसरों के दोषों को कहने वाला, विसोहियं को, उदीरएज्जा - उदीरणा (प्रदीप्त) करने वाला, दण्डपहं- राजपथ पर, धासइ पावकम्मी- पाप कर्म करने वाला । - Jain Education International भावार्थ - जो पुरुष सदा क्रोध करता है और दूसरे के दोषों को कहता है एवं शान्त हुए कलह : को जो फिर प्रदीप्त करता है वह पुरुष पापकर्म करनेवाला है तथा वह बराबर झगड़े में पड़ा रहता है । वह छोटे मार्ग से जाते हुए अन्धे की तरह अनन्त दुःखों का भाजन होता है । विवेचन - क्रोध करने वाला तथा जो एक वक्त शान्त हुए कषाय की फिर उदीरणा करता है। तथा कठोर वचन बोलता है वह साधु के वेश को धारण करने वाला कटुभाषी पापी पुरुष चार गति वाले इस संसार में कष्टकारी स्थानों को प्राप्त होकर बारंबार संसार में परिभ्रमण करता रहता है। जे विग्गही अण्णाभासी, ण से समे होई अझंझ-पत्ते । वायकारी य हीरीमणे य, एगंत-दिट्ठी य अमाइ-रूवे ॥ ६ ॥ कठिन शब्दार्थ - विग्गहीए - विग्रह करने वाला झगडालू, अण्णायभासी न्याय को छोड़ कर भाषण करने वाला, अझंझपत्ते कलह रहित, उवायकारी आज्ञा पालन करने वाला, हीरीमणे - लज्जालु, एगंतदिट्ठी - एकांत दृष्टि वाला । भावार्थ - जो कलह करता है तथा अन्याय बोलता है वह समता को प्राप्त नहीं होता है अतः साधु, गुरु की आज्ञा का पालन करने वाला, पापकर्म करने में गुरु आदि से लज्जित होने वाला और जीवादि तत्त्वों में पूरी श्रद्धा रखने वाला बने, जो पुरुष ऐसा है वही अमायी है । For Personal & Private Use Only शांत हुए कलह कंष्ट पाता है, - - www.jainelibrary.org

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