Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 326
________________ अध्ययन १५ । ३१३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भी विषय वासना को जीतकर मुक्ति को प्राप्त कर लेती हैं और पुरुष भी तभी मुक्ति को प्राप्त कर सकता है जब वह विषय वासना को जीत ले ॥९॥ जीवियं पिट्ठओ किच्चा, अंतं पावंति कम्मुणं । . कम्मुणा संमुहीभूता, जे मग्ग-मणुसासइ ॥१०॥ कठिन शब्दार्थ - पिट्ठओ - पीछे, अंतं - अंत को, पावंति- प्राप्त करते हैं, कम्मुणं - कर्म के, संमुहीभूता - संमुखीभूत, मग्गं- मोक्षमार्ग को, अणुसासइ - शिक्षा देते हैं । भावार्थ - साधु पुरुष जीवन से निरपेक्ष होकर ज्ञानावरणीय कर्मों के अन्त को प्राप्त करते हैं । वे .. पुरुष उत्तम अनुष्ठान के द्वारा मोक्ष के सम्मुख हैं जो मोक्षमार्ग की शिक्षा देते हैं । अणुसासणं पुढो पाणी, वसुमं पूयणासु (स) ए । अणासए जए दंते, दढे आरय-मेहुणे ॥ ११॥ . कठिन शब्दार्थ-वसुमं - वसुमान्-संयमी, पूयणासु( स )ए- पूजा को भोगने वाला, अणासए-- अनाशय-आशय (इच्छा) नहीं रखने वाला, जए - संयत-संयम परायण, दंते - जितेन्द्रिय, दढे - दृढ़, 'आरय-मेहुणे- मैथुन से रहित । . भावार्थ - धर्मोपदेश भिन्न भिन्न प्राणियों में भिन्न भिन्न रूप में परिणत होता है । संयमधारी, देवादिकृत पूजा को प्राप्त करने वाला परन्तु उस पूजा में रुचि न रखने वाला, संयमपरायण जितेन्द्रिय, संयम में दृढ़ और मैथुन रहित पुरुष मोक्ष के सम्मुख है। विवेचन - वसु का अर्थ है धन । संयम रूपी धन जिसके पास है उसको वसुमान् कहते हैं। मूल गाथा. में पूयणासए' शब्द दिया है जिसकी संस्कृत छाया की है 'पूजनास्वादकः' जिसका अर्थ है - देवों द्वारा की हुई अशोकवृक्ष आदि पूजा को तीर्थंकर भगवान् भोगते हैं, किन्तु उसमें उनकी रूचि व इच्छा न होने के कारण उनको आधाकर्म आदि कोई दोष नहीं लगता है इसलिए वे सत्संयमी हैं सब पापों के त्यागी होने से वे मोक्ष के सम्मुख हैं ॥ ११ ॥ .णीवारे व ण लीएज्जा, छिण्णसोए अणाविले । .. अणाइले सया दंते, संधि पत्ते अणेलिसं ॥ १२॥ कठिन शब्दार्थ - णीवारे - नीवार-चावल के दाने, लीएज्जा - लिप्त हो, छिण्णसोए - छिन्नस्रोत, अणाविले - राग द्वेष रूप मल से रहित, अणाइले - स्थिर चित्त, संधि - संधि को, पत्ते - प्राप्त करता है, अणेलिसं - अनुपम ।। भावार्थ - जैसे चावल के दानों को खाने के लोभ से सुअर आदि प्राणी वध्यस्थान पर पहुँच जाते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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