Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १५
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कठिन शब्दार्थ पुरा- पूर्व समय में, धी(वी)रा - धीर (वीर), सुव्वया - सुव्रत पुरुष, दुणिबोहस्स मग्गस्स - दुर्निबोध मार्ग कठिनाई से प्राप्त करने योग्य मार्ग के, अंतं - अंत को, पाउकराप्रकट करके, तिण्णा - पार हुए हैं ।
भावार्थ- पूर्व समय में बहुत से धीर वीर पुरुष हुए हैं और भविष्य में भी होंगे । वे कठिनाई से प्राप्त करने योग्य सम्यग् दर्शन ज्ञान और चारित्र का अनुष्ठान करके तथा इनका प्रकाश करके संसार से पार हुए हैं । ऐसा मैं कहता हूँ ।
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विवेचन सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप, यह मोक्ष का मार्ग है। यह भूतकाल में भी था वर्तमान "में है और भविष्य काल में भी रहेगा। यह अनादि है । इसका आचरण करके भूतकाल में अनंत जीव संसार सागर से तिर गये हैं। वर्तमान में संख्याता जीव तिर रहे हैं और भविष्यत् काल में फिर अनन्त जीव तिर जायेंगे। सभी तीर्थङ्कर भगवन्त इसी मार्ग का उपदेश देते हैं।
- इति ब्रवीमि -
अर्थात् - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि आयुष्मन जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ। मैं अपनी मनीषिका (बुद्धि) से कुछ नहीं कहता हूँ ।
॥ आदानीय नामक पन्द्रहवां अध्ययन समाप्त ॥
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