Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १४
भावार्थ - साधु आगम के अर्थ को दूषित न करे तथा शास्त्र के सिद्धान्त को न छिपावे । प्राणियों की रक्षा करने वाला साधु सूत्र और अर्थ को अन्यथा न करे तथा शिक्षा देने वाले गुरु की भक्ति का ध्यान रखते हुए सोच विचार कर कोई बात कहे एवं गुरु से जैसा सुना है वैसा ही दूसरे के प्रति सूत्र की व्याख्या करे ।
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विवेचन - मुनि सर्वज्ञोक्त आगम की व्याख्या करता हुआ अप सिद्धांत की प्ररूपणा करके सर्वज्ञोक्त आगम को दूषित न करे तथा गूढ़ रहस्य युक्त सिद्धान्त को अपात्र एवं अयोग्य व्यक्ति को न सीखावे। जैसा कि दशवैकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन में हरिभद्रसूरी कृत टीका में लिखा है - गुणवते शिष्यायागमरहस्यं देयं मा गुणवते ।
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अर्थ- गुणवान् शिष्य को आगम का रहस्य बताना चाहिए किन्तु अगुणवान् (अपात्र, अयोग्य) को आगम का रहस्य नहीं बताना चाहिए।
प्रश्न- एक शिष्य को ज्ञान सीखावे और दूसरे शिष्य को न सीखावे, क्या यह गुरु का पक्षपात नहीं होगा ?
उत्तर- पक्षपात नहीं होगा, क्योंकि टीकाकार ने लिखा है -
तदनुकम्पा प्रवृत्तेरिति ।
अर्थ - अपात्र को गूढ़ रहस्य नहीं बताते हैं यह गुरु महाराज उसके ऊपर अनुकम्पा (दया) करते हैं, अर्थात् इसमें उसका हित सोचते हैं यथा
आमे बड़े निहितं जहा जलं तं घडं विणासेइ ।
इअ सिद्धंतरहस्स अप्पाहारं विणासेइ ।।
संस्कृत छाया -
आमे घटे निहितं यथा जलं तं घटं विनाशयति ।
इति (एवं ) सिद्धान्त रहस्य मल्याधारं विनाशयति ॥
अर्थ - जैसे अग्नि में बिना पकाए हुए मिट्टी के कच्चे घड़े में जल भरे तो घड़ा भी नष्ट हो जाएगा और जल भी नष्ट हो जाएगा। इसी तरह अल्पाधार (अयोग्य, अपात्र) शिष्य को यदि सिद्धान्त का रहस्य बताया जाए तो वह ज्ञान भी दूषित हो जाएगा और उस शिष्य का भी अहित हो जाएगा। इसलिए उस शिष्य का हित सोचकर उसको आगम का रहस्य नहीं बतलाते हैं।
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शिक्षा देने वाले गुरु की बहुमान पूर्वक भक्ति करे तथा, जैसा अर्थ गुरुदेव से सुना है वैसा ही दूसरे को कहे एवं प्ररूपणा करे ॥ २६ ॥
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