Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 307
________________ ग्रन्थ नामक चौदहवाँ अध्ययन जड़ के प्रति आकर्षण, उसके अनुसार उन वस्तुओं का संग्रह और संग्रह में साधक-बाधक साधनों के प्रति राग-द्वेष का नाम हैं 'ग्रन्थ' अर्थात् आवेग और आवेगों के साधक पदार्थ ही ग्रन्थ है। जिसकी शास्त्रीय संज्ञा आभ्यन्तर ग्रन्थि और बाह्य ग्रन्थि है । आभ्यन्तर ग्रन्थि जब शिथिल होती ह्य-ग्रन्थि का त्याग सम्भव हो सकता है और बाह्य ग्रंथि त्यागने पर, आभ्यन्तर ग्रन्थि को समूल नष्ट करने की सुदृढ़ भूमिका-स्थिति प्राप्त होती है । ग्रन्थि का मूल अविचार-अज्ञान में हैं और ग्रन्थि-नाश का मूल विचार-ज्ञान में हैं । ग्रन्थि-नाश के लिये सच्चा विश्वास, ज्ञान और तदनुसार आचरण-अभ्यास की आवश्यकता है अर्थात् ज्ञानी बाह्य उपाधियाँ स्थूल ग्रन्थि का त्याग करके सूक्ष्म-सूक्ष्मतम ग्रन्थियों के विनाश की ओर मुड़ता है । कभी कभी साधक के पूर्व जन्म के अभ्यास के कारण उल्टा क्रम भी हो जाता है । पर इसमें साधक के पहले का अभ्यास ही मुख्य कारण होता है । इसलिये इस अध्ययन में बाह्य (स्थूल) ग्रन्थ के त्याग के बाद आभ्यन्तर (आन्तर) ग्रन्थ के त्याग और निर्ग्रन्थता की स्थिरता के लिये ज्ञान प्राप्ति के साधनों का वर्णन किया है और . अभ्यास पर जोर दिया है। इस अध्ययन का नाम यद्यपि 'ग्रन्थ' है, पर इसमें ग्रन्थ के स्वरूपों का स्पष्टता से कथन नहीं हैग्रन्थ के त्याग और ज्ञान अभ्यास का वर्णन है । इसलिये यह मानना उचित है कि इस अध्ययन का नामकरण पहली गाथा के आदिम शब्द पर से हुआ है। जैसे कि मानतुंग आचार्य के विरचित 'आदिनाथ स्तोत्र' का नाम, श्लोक के प्रथम पाद पर से 'भक्तामर स्तोत्र' और 'पार्श्वनाथ स्तोत्र' का नाम 'कल्याण मन्दिर' प्रचलित है। ____ इसके पहले तेरहवें अध्ययन की पहली गाथा में 'आहत्तहियं' शब्द आया है इस पर से उस अध्ययन का नाम भी 'आहत्तहियं' (याथातथ्य) रखा गया है तथा उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्ययन की पहली गाथा में 'दुमपत्तए' शब्द आया है तो अंध्ययन का नाम भी 'दुमपत्तए' दिया गया है, इसी प्रकार तीसरे अध्ययन की पहली गाथा में 'चत्तारि' शब्द आया है, इस पर से अध्ययन का नाम 'चाउरंगिजं' एवं चौथे अध्ययन की पहली गाथा में 'असंखयं' शब्द आया है, इस पर से अध्ययन का नाम भी 'असंखयं दिया गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि पहली गाथा में आए हुए प्रथम शब्द के अनुसार अध्ययन का नाम भी वही दे दिया जाता है। यह परिपाटी प्राचीन काल से चली आई है। तदनुसार इस चौदहवें अध्ययन की पहली गाथा में 'गंथं' शब्द आया है इसलिए इस अध्ययन का नाम भी 'गंथ' (ग्रन्थ) अध्ययन है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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