Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 223
________________ २१० श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 आदि के मन्त्रों को सीखना जिनमें कि अश्वमेध, पुरुषमेध और सर्वमेध आदि का वर्णन है । जैसा कि कहा है - ... षट् शतानि नियुज्यन्ते, पशूनां मध्यमेऽहनि । अश्वमेधस्य वचनान्न्यूनानि पशुभिस्त्रिभिः ॥ अर्थ - ऋग्वेद के अन्दर अश्वमेध यज्ञ के प्रकरण में लिखा है कि, अश्वमेध यज्ञ के वचनों के अनुसार बीच के दिन में तीन कम छह सौ अर्थात् ५९७ पशु यज्ञ में होम करने चाहिए । इत्यादि ग्रन्थों का अध्ययन करना वर्जनीय है । क्योंकि जीव हिंसा का उपदेश देने वाले पाप सूत्र हैं । माइणो कटु माया य, काम भोगे समारभे । हंता छेत्ता पगभित्ता, आयसायाणुगामिणो ॥५॥ __ कठिन शब्दार्थ - माइणो - मायावी, कामभोगे - कामभोगों को समारभे - आरम्भ करते हैं (सेवन करते हैं), हंता - हनन करने वाला, छेत्ता - छेदन करने वाला, पगभित्ता - काटने वाला आयसायाणुगामिणो - अपने सुख के अनुगामी हो कर ।। भावार्थ - कपटी जीव कपट के द्वारा दूसरे का धनादि हर कर विषय सेवन करते हैं तथा अपने . सुख की इच्छा करने वाले वे, प्राणियों का हनन छेदन और कर्त्तन करते हैं । अर्थात् मारते हैं, छेदन . भेदन करते हैं और नाक कान आदि काट लेते हैं । मणसा वयसा चेव, कायसा चेव अंतसो । आरओ परओ वावि, दुहा वि य असंजया ॥६॥ कठिन शब्दार्थ - अंतसो - अन्तशः-अन्त में अथवा मन से, आरओ - इस लोक के लिये, परओपर लोक के लिये, असंजया - असंयत.। - भावार्थ - असंयमी पुरुष मन, वचन और काया से तथा काया की शक्ति न होने पर मन वचन से इसलोक और परलोक दोनों के लिये स्वयं प्राणियों का घात करते हैं और दूसरों के द्वारा भी करवाते हैं । विवेचन - असंयमी मनुष्य मन, वचन और काया रूप तीन योग से तथा करने, कराने और अनुमोदन रूप तीन करण से प्राणियों का घात करते हैं। वे काया की शक्ति न होने पर भी तन्दुल मत्स्य की तरह मन से ही पाप कर्म करके कर्म बान्धते हैं। यह लौकिक शास्त्रों का कथन है ऐसा विचार कर इस लोक और परलोक के लिये स्वयं जीव घात करते हैं और दूसरों से भी करवाते हैं। अतः लौकिक शास्त्र पाप सूत्र कहे जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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