Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ९
२३१
संपसारी कयकिरिए, पसिणायतणाणि य । सागारियं च पिंडंच, तं विजं परिजाणिया ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - संपसारी - असंयतों के साथ वार्तालाप करना, कयकिरिय - कृत क्रिय-असंयम की प्रशंसा करना, पसिणायतणाणि - ज्योतिष के प्रश्नों का उत्तर देना, सागारियं पिंडं- शय्यातर पिण्ड।
भावार्थ - असंयतों के साथ सांसारिक वार्तालाप करना तथा असंयम के अनुष्ठान की प्रशंसा करना एवं ज्योतिष के प्रश्नों का उत्तर देना तथा शय्यातर का पिण्ड लेना, इन बातों को संसार परिभ्रमण का कारण जानकर साधु त्याग कर दे ।
विवेचन - गाथा में 'सागारियं पिंड' शब्द आया है जिसका अर्थ है, शय्यातर का पिण्ड (आहारादि) लेना । (जिसकी आज्ञा लेकर साधु मकान में ठहरे हैं उस मकान मालिक को शय्यातर कहते हैं ।) - यही अर्थ आगमों में जगह जगह मिलता है । किन्तु टीकाकार ने इस शब्द का अर्थ लिखा है -
'सूतकगृहपिण्डं जुगुप्सितं वापसदपिण्डं वा' अर्थ - सूतक वाले घर का पिण्ड अथवा नीच के घर का पिण्ड ।
टीकाकार का यह अर्थ आगमानुकूल नहीं है यह उनकी मन कल्पना मात्र है क्योंकि शय्यातर पिण्ड का यह अर्थ नहीं होता है ।। १६ ।।
अट्ठावयं ण सिखिज्जा, वेहाईयं च णो वए । हत्थकम्मं विवायंच, तं विजं परिजाणिया ॥१७॥ . कठिन शब्दार्थ- अट्ठावयं - अष्टापद-जुआ खेलना, वेहाईयं - वेधातीत-अधर्म प्रधान वचन।
भावार्थ- साधु जुआ न खेले तथा अधर्मप्रधान वाक्य न बोले एवं वह हस्तकर्म तथा विवाद न करे। इन बातों को संसार परिभ्रमण का कारण जानकर विद्वान् पुरुष त्याग कर दे । - विवेचन - गाथा में 'अट्ठावयं' शब्द दिया है । जिसकी संस्कृत छाया दो तरह से हो सकती है - अर्थपद या अष्टापद । जिससे धन, धान्य, हिरण, स्वर्ण आदि की प्राप्ति की जाती है उसको अर्थपद कहते हैं अथवा धन का उपार्जन करने के लिये जो उपाय बतलाता है उस शास्त्र को अर्थपद कहते हैं । वह चाणक्य आदि का बनाया हुआ अर्थ शास्त्र है तथा प्राणियों के घात की शिक्षा देने वाले जो कुशास्त्र हैं साधु उनका अभ्यास न करे । अष्टापद शब्द का अर्थ है जुआ खेलना । साधु जुआ, शतरंज, चौपड़पासा, ताश आदि न खेले । धर्म के उल्लंघन को 'वेध' कहते हैं । जिससे धर्म का उल्लंघन हो ऐसा अधर्म युक्त वचन साधु न बोले । अथवा वेध अर्थात् वस्त्रवेध यह जुए की एक जाति है उससे सम्बन्धित वचन भी न बोले । हस्तकर्म का अर्थ प्रसिद्ध है अथवा परस्पर हाथ से मारामारी करना
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