Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000००००००
संधए साहुधम्मं च, पावधम्मं णिराकरे । उवहाण-वीरिए भिक्खू, कोहं माणं ण पत्थए ।। ३५॥
कठिन शब्दार्थ - साहुधम्म - साधुधर्म को, पावधम्म - पाप धर्म का, णिराकरे - निराकरण-त्याग करे, उवहाणवीरिए - उपधान वीर्य-तप में पराक्रम करने वाला, पत्थए - इच्छा करे ।
भावार्थ - साधु, क्षान्ति आदि धर्म की वृद्धि करे और पापमय धर्म का त्याग करे एवं तप में अपना पराक्रम प्रकट करता हुआ क्रोध और मान का सर्वथा त्याग कर दे।
विवेचन - क्षमा, मार्दव, आर्जव, मुक्ति, तप, संयम, सत्य, शौच, अकिंचनत्व, ब्रह्मचर्य, ये दस श्रमण धर्म हैं। बुद्धिमान् पुरुष इन धर्मों की वृद्धि करे तथा हर समय नए-नए ज्ञानों को सीखकर ज्ञान की वृद्धि करे तथा शंका आदि दोषों को छोड़कर जीवादि पदार्थों को अच्छी तरह स्वीकार करके सम्यग्-दर्शन की वृद्धि करे एवं अतिचार रहित मूल गुण और उत्तर गुणों को पूर्ण रूप से पालन करके तथा प्रतिदिन नए-नए अभिग्रहों को धारण करके चारित्र और तप की वृद्धि करे। जो कार्य प्राणियों की हिंसा से युक्त होने के कारण पाप का कारण रूप है, इसका त्याग करे। ___गाथा में क्रोध और मान का ग्रहण किया गया है। उपलक्षण से माया और लोभ का भी ग्रहण कर . लेना चाहिए अर्थात् मुनि को चारों कषाय का त्याग करके तप करने में पूर्ण पुरुषार्थ करना चाहिए।
जे य बुद्धा अइकता, जे य बुद्धा अणागया । संति तेसिं पइद्वाणं, भूयाणं जगई जहा ॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - बुद्धा - बुद्ध (तीर्थंकर) अइक्कंता - अतिक्रांत-भूतकाल में हो चुके हैं, अणागया - अनागत में-भविष्यकाल में, संति - शांति, पइट्ठाणं - आधार, जगई - पृथ्वी, भूयाणं - भूतों-जीवों का।
भावार्थ - जो तीर्थंकर भूतकाल में हो चुके हैं और जो भविष्यकाल में होंगे उन सभी का शान्ति ही आधार है जैसे समस्त प्राणियों का त्रिलोकी आधार है ।
विवेचन - भूतकाल में अनन्त तीर्थंकर भगवंत हो चुके हैं। वर्तमान काल में महाविदेह क्षेत्र में संख्यात (बीस) तीर्थंकर भगवन् विद्यमान हैं तथा भविष्यकाल में अनन्त तीर्थंकर होवेंगे। वे सभी स्वयमेव बोध को प्राप्त करते हैं। इसलिए वे स्वयंबुद्ध कहलाते हैं। उन्हें दूसरों के उपदेश की आवश्यकता नहीं होती है। इसीलिए गाथा में 'बुद्ध' शब्द दिया है। बुद्ध शब्द का अर्थ यहाँ पर तीर्थंकर भगवंत् है । सब तीर्थंकर भगवंतों का उपदेश शान्ति मार्ग का हैं। अर्थात् जिस प्रकार जगत् के सब जीव अजीव आदि पदार्थों का आधार पृथ्वी है, इसी प्रकार तीर्थंकर भगवन्तों के उपदेश का आधार भी शान्ति
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