Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ११
२५७
प्राप्ति होना दुर्लभ है। इन को प्राप्त करके धार्मिक कार्य में जरा भी विलम्ब नहीं करना चाहिये। यही बुद्धिमानों का कर्तव्य है।
तं मग्गं णुत्तरं सुद्ध, सव्व-दुक्ख विमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू, तं णो बूहि महामुणी ॥२॥
कठिन शब्दार्थ - अणुत्तरं - अनुत्तर-श्रेष्ठ, सव्वदुक्ख-विमोक्खणं - सब दुःखों को छुड़ाने वाले, जाणासि - जानते हो, बूहि - बताइये ।।
__भावार्थ - जम्बूस्वामी श्री सुधर्मा स्वामी से पूछते हैं कि - हे महामुने ! आप सब दुःखों को छुड़ाने वाले तथा सबसे श्रेष्ठ तीर्थंकर के कहे हुए मार्ग को जानते हैं इसलिये हमें वह सुनाइये ।
जइ णो केइ पुच्छिण्जा, देवा अदुव माणुसा । तेसिं तु कयरं मग्गं, आइक्खेज कहाहि णो ॥३॥ कठिन शब्दार्थ - पुच्छिज्जा - पूछे, अदुव - अथवा, आइक्खेज - बतलाए, कहाहि - कहो ।
भावार्थ - जम्बूस्वामी श्री सुधर्मा स्वामी से कहते हैं कि - यदि कोई देवता या मनुष्य हमसे मोक्ष का मार्ग पूछे तो हम उनको कौनसा मार्ग बतावें, यह आप हमें बतलाइये ।
- विवेचन - जम्बूस्वामी अपने धर्माचार्य गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी से निवेदन करते हैं कि हे भगवन् ! यद्यपि हम तो आप के असाधारण गुणों को जानने के कारण आपके वचनों पर विश्वास होने से मान लेते हैं तथा दूसरे लोगों को हम किस प्रकार समझावें यह हमें बताने की कृपा करें। देवता और मनुष्य ही प्रश्न कर सकते हैं इसलिये इस गाथा में उन्हीं का ग्रहण किया गया है।
जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा । . . तेसिमं पडिसाहिज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥४॥ ...
कठिन शब्दार्थ - पडिसाहिजा - कहना चाहिये, मग्गसारं- मार्ग सार, सुणेह - सुनो, मे - मुझ से ।
- भावार्थ - श्री सुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि यदि कोई देवता या मनुष्य मोक्ष का मार्ग पूछे तो उनसे आगे कहा जाने वाला मार्ग कहना चाहिये । वह मार्ग मेरे से तुम सुनो । - अणुपुव्वेण महाघोरं, कासवेण पवेइयं ।
जमादाय इओ पुव्वं, समुहं ववहारिणो ॥५॥ कठिन शब्दार्थ - अणुपुब्वेण - अनुक्रम से-क्रमशः, महाघोरं - महाघोर-अत्यंत कठिन मार्ग
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