Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 1000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - छिण्णसोए - छिन्नस्रोत-मिथ्यात्व आदि स्रोतों को छिन्न करने वाला, अणासवे - अनास्त्रव-आस्रव रहित, सुद्धं - शुद्ध धर्म का, अक्खाइ - आख्यान (उपदेश) करता है, डिपुण्णं - परिपूर्ण, अणेलिसं - अनुपम-उपमा रहित ।
भावार्थ - मन वचन और काया से आत्मा को पाप से बचाने वाला, जितेन्द्रिय एवं संसार । की मिथ्यात्व आदि धारा को काटा हुआ आस्रव रहित पुरुष परिपूर्ण उपमा रहित शुद्ध धर्म का उपदेश करता है।
विवेचन - जिसने अपनी आत्मा, मन और इन्द्रियों को वश में कर लिया है एवं जो राग द्वेष पहित है वही पुरुष अनुपम, अद्वितीय एवं मोक्ष जाने के कारण रूप समस्त दोषों से रहित सर्वविरति रूप शुद्ध धर्म का उपदेश कर सकता है।। २४ ।।
तमेव अवियाणंता, अबुद्धा बुद्धमाणिणो । बुद्धा मोत्ति य मण्णंता, अंत एए समाहिए ॥२५॥
कठिन शब्दार्थ - अवियाणंता - नहीं जानते हुए, अबुद्धा - अबुद्ध-अज्ञानी, बुद्धमाणिणो - बुद्ध मानने वाले, अंत एए - दूर हैं, समाहिए - समाधि से ।
भावार्थ - पूर्वोक्त शुद्ध धर्म को न जानते हुए, अविवेकी होकर भी अपने को विवेकी सानने वाले अन्यदर्शनी समाधि से दूर हैं ।
विवेचन - पूर्वोक्त शुद्ध धर्म को न जानने वाले अविवेकी पुरुष "हम ही धर्म के तत्त्व को जानते हैं" ऐसा मानते हैं। परन्तु वे सम्यग्दर्शन आदि भाव समाधि से दूर है। अतएव वे अज्ञानी हैं।
ते य बीओदगं चेव, तमुहिस्सा य जंकडं । भोच्चा झाणं झियायंति, अखेयण्णाऽसमाहिया ॥ २६॥
कठिन शब्दार्थ - बीओदगं - बीज और कच्चा जल तमुहिस्सा - उनके उद्देश्य से, भोच्चा - . भोग कर, झाणं- ध्यान, झियायंति- ध्याते हैं, अखेयण्णा - अखेदज्ञ, असमाहिया- समाधि रहितः ।
भावार्थ - बीज और कच्चा जल तथा उनके लिये बनाये हुए आहार को उपभोग करने वाले वे अन्यतीर्थी आर्त्तध्यान ध्याते हैं तथा वे भावसमाधि से दूर हैं।
विवेचन - बुद्ध धर्म को मानने वाले को शाक्य कहते हैं। उन्हें जीव अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान न होने के कारण वे कच्चा जल और कच्चे अनाज आदि का सेवन करते हैं उनके निमित्त बने हुए
आहारादि को भोगते हैं तथा भक्तों को कह कर अपने लिए आहारादि बनवाते हैं एवं वे बुद्ध संघ के लिए आहार बनवाने और उसकी प्राप्ति के लिए चिंतित रहते हैं, यह आर्तध्यान है, वे रूपया पैसा आदि परिग्रह रखते हैं यह आर्तध्यान का कारण है। जैसा कि कहा है - .
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