Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १०
२४७
अप्पियं - अप्रिय, उहाय - उठकर, विसण्णो - विषण्ण-संयम से पतित, शिथिल, सिलोयकामी - श्लोककामी- प्रशंसा का अभिलाषी।
. भावार्थ - साधु समस्त जगत् को समभाव से देखे । वह किसी का प्रिय अथवा अप्रिय न करे । कोई कोई प्रव्रज्या धारण करके परीषह और उपसर्गों की बाधा आने पर दीन हो जाते हैं और प्रव्रज्या छोड़कर पतित हो जाते हैं कोई अपनी पूजा और प्रशंसा के अभिलाषी हो जाते हैं ।
आहाकडं चेव णिकाममीणे, णियामचारी य विसण्णमेसी । इत्थीसु सत्ते य पुढो य बाले, परिग्गहं चेव पकुव्वमाणे ॥ ८ ॥
कठिन शब्दार्थ - आहाकडं - आधाकर्म, णिकाममीणे- अत्यन्त कामना करता है, णियामचारीनिकामचारी-अत्यन्त भ्रमण करता है, विसण्णं. - विषण्ण-अवसन्न-थका हुआ एसी - चाहने वाला, सत्ते - आसक्त । . .
भावार्थ - जो पुरुष प्रव्रज्या लेकर आधाकर्मी आहार आदि की चाहना करता है और आधाकर्मी आहार आदि के लिये अत्यन्त भ्रमण करता है वह कुशील है तथा जो स्त्री में आसक्त होकर उसके विलासों में मोहित हो जाता है तथा स्त्री प्राप्ति के लिये परिग्रह का संचय करता है वह पाप की वृद्धि करता है ।
'विवेचन - प्रश्न - आधाकर्म किसे कहते हैं ? ... उत्तर - 'आधया साधुप्रणिधानेन यत् सचेतनं अचेतनं क्रियते, अचेतनं वा पच्यते, यूयते
वस्त्रादिकं विरच्यते गृहादिकं इति आधाकर्मः।' ... अर्थ - साधु साध्वियों के लिये सचित्त वस्तु को अचित्त बनाना, अचित्त को पकाना, कपड़े आदि बूनना तथा प्रकान आदि बनवाना आदि आधाकर्म कहलाता है। ..
- गाथा में 'निकाममीणे' शब्द दिया है जिसका अर्थ है - आधाकर्मी आहारादि की अत्यन्त चाहना करता है। इसी बात को विशेष स्पष्ट करने के लिये गाथा में 'णिकामचारी' शब्द भी दिया है जिसका अर्थ है - आधाकर्मी आदि वस्तु के लिये निमंत्रण की चाहना करता है। ऐसा साधु संयम पालन करने में ढीला, पासत्था, अवसन्न (संयम पालन से थका हुआ), कुशील बनकर गृहस्थ तक बन जाता है। फिर वह कामभोगों में आसक्त हो कर धन का संचय रूप परिग्रह करता है।
वेराणुगिद्धे णिचयं करेइ, इओ चुए से इहमट्ठदुग्गं ।
तम्हा उ मेहावी समिक्ख धम्मं, चरे मुणी सव्वउ विप्पमुक्के ॥ ९ ॥ . कठिन शब्दार्थ - वेराणुगिद्धे - वैर में गृद्ध, णिचयं - संचय, चुए - च्युत होकर, इहं - यह, अट्ठदुग्गं - दुःखदायी स्थानों में, समिक्ख - समीक्षा कर, सव्वउ - सब से, विप्पमुक्के - मुक्त हो कर।
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