Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ८
२१७ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ____ सादिकं-समायं मृषावादं न ब्रूयात्, तथाहि परवञ्चनार्थं मृषावादोऽधिक्रियते, स च न मायामन्तरेण भवतीत्यतो मृषावादस्य माया आदिभूता वर्तते, इदुमुक्तं भवति-यो हि परवञ्चनार्थ समायो मृषावादः स परिहियते, यस्तु संयमगुप्त्यर्थं "न मया मृगा उपलब्धा" इत्यादिकः स न दोषाय इति ।
अर्थ - दूसरे को ठगने के लिये जो झूठ कपट के साथ बोला जाता है उसी का निषेध यहाँ पर किया गया है। परन्तु संयम की रक्षा के निमित्त जो झूठ बोला जाता है उसका निषेध नहीं किया गया है। जैसे कि विहार कर आते हुए मुनियों से मार्ग में सामने से कोई शिकारी आकर यह पूछे कि क्या आपने इधर से जाते हुए हिरणों को देखा है क्या ? तो मुनि कह दे कि हमने नहीं देखा है। यह वचन झूठ होते हुए भी दोष के लिये नहीं है। क्योंकि यह संयम रक्षार्थ और जीव रक्षार्थ झूठ बोला गया है।
समाधान-टीकाकार का उपरोक्त लिखना आगमानुकूल नहीं है क्योंकि दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ६ की गाथा इस प्रकार है -
अप्पणट्ठा परट्ठा वा, कोहा वा जइ वा भया। हिंसगंण मुसंबूया, णो वि अण्णं वयावए ॥१२॥ - अर्थ - अपने लिये अथवा दूसरों के लिये क्रोध, मान, माया लोभ, हास्य और भय के वशीभूत होकर स्वयं झूठ न बोले, न दूसरों से बुलवावे और झूठ बोलने वालों का अनुमोदन भी न करे क्योंकि झूठ बोलना दूसरों के लिये पीड़ाकारी होता है तथा दशवैकालिक सूत्र के सातवें सुवाक्यशुद्धि नामक अध्ययन में कहा है -
चउण्हं खलु भासाणं, परिसंखाय पण्णवं। 'दुण्हं तु विणयं सिक्खे, दो ण भासिज सव्वसो ॥
अर्थ- बुद्धिमान् साधु सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार इन चार भाषाओं के स्वरूप को भली प्रकार जान कर सत्य और व्यवहार, इन दो भाषाओं का विवेक पूर्वक उपयोग करना सीखे और असत्य और मिश्र इन दो भाषाओं को सभी प्रकार से नहीं बोले। ... इस गाथा में "सव्वसो" शब्द दिया है जिसका अर्थ है सर्वथा प्रकार से झूठ न बोले अर्थात् प्राणान्त कष्ट आ जाय तो भी झूठ न बोले। - शास्त्रकार का जब ऐसा स्पष्ट निर्देश है तब फिर टीकाकार का यह लिखना कि संयमार्थ और जीवरक्षार्थ झूठ बोल जाय यह कैसे ठीक हो सकता है। यह इस आगम पाठ से सर्वथा विपरीत है।
आचाराङ्ग सूत्र दूसरा श्रुतस्कन्ध के ईर्या नामक तीसरे अध्ययन में -
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