Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आध्यात्म दोष(चार कषाय) जीत लिये जाते हैं । भगवान् ने अठारह पापों का त्याग तीन करण तीन योग से कर दिया था ।
गाथा में "वंता" शब्द दिया है जिसका अर्थ है वमन करना । अर्थात् त्याग करना ।
प्रश्न - त्याग करने में और वमन करने में क्या अन्तर हैं ?
उत्तर - त्याग की हुई वस्तु तो त्याग की मर्यादा पूरी होने पर फिर सेवन की जा सकती है परन्तु जिस चीज का वमन कर दिया जाता है वह चीज वापिस कभी ग्रहण नहीं की जाती । यह त्याग और वमन में अन्तर है । भगवान् महावीर स्वामी ने चारों कषायों का त्याग ही नहीं किन्तु वमन ही कर दिया था । अर्थात् उन कषायों को वापिस कभी ग्रहण ही नहीं किया । इस प्रकार त्याग करने की अपेक्षा वमन करना विशेष महत्त्वपूर्ण है ।
किरियाकिरियं वेणइयाणुवायं, अण्णाणियाणं पडियच्च ठाणं ।
से सव्ववायं इति वेयइत्ता, उवट्ठिए संजम दीहरायं ॥। २७ ॥
कठिन शब्दार्थ - किरियाकिरियं क्रियावादी अक्रियावादी, वेणइयाणुवायं - विनयवादी के कथन को, अण्णाणियाणं - अज्ञानवादी के, ठाणं स्थान को-पक्ष को, पडियच्च जानकर, नव्वंषायं - सभी वादियों के मत को, वेयइत्ता - जान कर, उवट्टिए - स्थित, संजमदीहरायं - वजीवन के लिये संयम में।
भावार्थ - क्रियावादी, अक्रियावादी, विनयवादी तथा अज्ञानवादी इन सभी मतवादियों के मतों को जानकर भगवान् यावज्जीवन संयम में स्थित रहे थे ।
अध्ययन ६
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विवेचन क्रियावादी के १८० भेद, अक्रियावादी के ८४ भेद, अज्ञानवादी के ६७ और
वनयवादी के ३२, ये सब मिलाकर ३६३ भेद होते हैं । ये सभी मिथ्यादृष्टि हैं
अतएव इनको खण्ड मत भी कहते हैं । इन सब का विस्तृत विवेचन इसी सूत्र के ससमय परसमय नामक पहले अध्ययन में कर दिया गया है।
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से वारिया इत्थि सराइभत्तं, उवहाणवं दुक्ख खयट्टयाए ।
लोगं विदित्ता आरं परं च सव्वं पभू वारिय सव्व वारं ॥ २८ ॥
कठिन शब्दार्थ - वारिया - वर्जन करके, इत्थि - स्त्री, सराइभत्तं - रात्रि भोजन सहित,
उवहाणवं उपधानवान् - तपस्वी, दुक्खखयट्टयाए - दुःखों का अन्त करने के लिए, लोगं - लोक को, आरं - इस, परं पर, विदित्ता जान कर, सव्वं वारियं सव्ववारं सर्ववर्जी प्रभु ने सभी पापों का त्याग कर दिया ।
भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी ने अपने अष्टविध
कर्मों को क्षपण करने के लिये स्त्री
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