Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ७
१९१
विवेचन - कर्मों की स्थिति थोड़े काल तक की भी होती है और लम्बे समय तक की भी होती है इसलिये थोड़ी स्थिति वाले कर्म तो अबाधा काल पूरा होने पर इसी जन्म में फल दे देते हैं और लम्बी स्थिति वाले कर्म अन्य अनेक जन्मों में फल देते हैं। निकाचित रूप से बन्धे हुए कर्म उसी तरह. से फल देते हैं । निधत्त आदि रूप से बन्धे हुए कर्म उसी रूप से अथवा दूसरी तरह से भी फल दे देते हैं । किन्तु यह तो निश्चित है कि, किये हुए कर्मों का फल जीव को अवश्य भोगना पड़ेगा । जैसा कि कहा है -
मा होहिरे विसण्णो जीव! तुमं विमणदुम्मणो दीणो। णहु चिंतिएण फिट्टइ तं दुक्खं जं पुरा रइयं ।। जइ पविससि पायालं अडविं व दरि गुहं समुदं वा । पुष्वकयाउ ण चुक्कसि अप्पाणं घायसे जइवि ।।
अर्थ - हे जीव ! तुम उदास, दीन तथा दुःखित चित्त मत बनो, क्योंकि जो कर्म तुमने पहले उपार्जन किया है वह चिन्ता करने से मिट नहीं सकता है चाहे तुम पाताल में प्रवेश कर जाओ अथवा किसी जङ्गल में चले जाओ या पहाड़ की गुफा में छिप जाओ और यहां तक कि अपने आत्मा का ही घात कर डालो किन्तु पूर्व जन्म के किये हुए कर्म के फल को भोगे बिना तुम्हारा छुटकारा हो नहीं सकता है।
जे मायरं वा पियरं च हिच्चा, समणव्वए अगणिं समारभिज्जा । अहाहु से लोए कुसील धम्मे, भूयाइं जे हिंसइ आयसाए ॥ ५॥
कठिन शब्दार्थ - मायरं - माता को, पियरं - पिता को, हिच्चा - छोड़ कर, समणव्वर - श्रमण व्रत, अगणिं - अग्नि का, समारभिज्जा - आरंभ करते हैं, कुसीलधम्मे - कुशील धर्म वाले, भूयाइं - प्राणियों की, हिंसइ - हिंसा करता है, आयसाए - अपने.सुख के लिए । .
भावार्थ - जो लोग माता पिता को छोड़ कर श्रमणव्रत को धारण करके अग्निकाय का आरम्भ करते हैं तथा जो अपने सुख के लिये प्राणियों की हिंसा करते हैं वे कुशील धर्म वाले हैं, यह सर्वज्ञ पुरुषों ने कहा है ।
.. विवेचन - पञ्चमहाव्रतधारी मुनि के लिये ठाणाङ्ग सूत्र के नववें ठाणे में भिक्षा की नौ कोटियाँ बतलाई गयी हैं वे इस प्रकार हैं - १. साधु आहार के लिये स्वयं जीवों की हिंसा न करे २. दूसरों के द्वारा हिंसा न करावे ३. हिंसा करते हुए का अनुमोदन न करे अर्थात् उसे भला न समझें ४. आहार आदि स्वयं न पकावे ५. दूसरों से न पकवावे ६. पकाते हुए का अनुमोदन न करे ७. स्वयं न खरीदे ८. दूसरों से नहीं खरीदवावे ९. खरीदते हुए किसी व्यक्ति का अनुमोदन न करे ।
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