Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ६ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 करा के अभय दान देकर मरण से बचा लिया। तब तीन रानियाँ चौथी रानी की हंसी करने लगी और वे कहने लगी कि यह चौथी रानी बड़ी कंजूस है इसने इस बिचारे को कुछ नहीं दिया। तब चौथी रानी कहने लगी कि मैंने तुम सब से इसका ज्यादा उपकार किया है। इस प्रकार उन रानियों में उस चोर का किसने ज्यादा उपकार किया है. इस विषय को लेकर विवाद होने लगा तब इस विषय का निर्णय देने के लिये रानियों ने राजा से निवेदन किया। तब राजा ने कहा कि मैं इसका निर्णय दूं इसकी अपेक्षा तो उस चोर को ही पूछ लिया जाय कि किसने तुम्हारा ज्यादा उपकार किया है। तब चोर को बुलाकर पूछा गया तो उसने कहा मैं मरण के भय से बहुत भयभीत बना हुआ था। इसलिये स्नान मञ्जन वस्त्राभरण भोजन आदि के सुख को मैं नहीं जान सका परन्तु जब मेरे कान में यह आवाज आयी कि मुझे अभयदान देकर मरण से बचा लिया है तो मेरे आनन्द की सीमा नहीं रही। अब मैं अपने आप को फिर से नया जन्म हुआ है ऐसा मानता हूँ। चोर के उत्तर से रानियों का विवाद समाप्त हो गया। .. इस दृष्टान्त का सार यह है कि सब दानों में अभयदान सर्वश्रेष्ठ है।
वचन के चार भेद किये गये हैं - १. सत्य वचन २. असत्य वचन ३. मिश्रवचन ४. असत्यामषा वचन। इनमें से सत्य वचन और असत्यामृषा (व्यवहार भाषा) वचन बोलना चाहिए परन्तु सत्य वचन में भी अनवद्य (निष्पाप) अर्थात् जिस वचन से दूसरों को पीड़ा उत्पन्न न हो ऐसा सत्य वचन श्रेष्ठ कहा गया है। परन्तु जिससे जीव को पीड़ा उत्पन्न होती हो वह सत्य वचन भी बोलना उचित नहीं है। शास्त्रकार तो यहाँ तक फरमाते हैं -
तहेव काणं काणत्ति, पंडगं पंडगत्ति वा। वाहियं वावि रोगित्ति, तेणं चोरोत्ति णो वए।
अर्थ:- इसी प्रकार काणे को काणा अथवा नपुंसक को नपुंसक (हिंजड़ा) तथा व्याधित को रोगी और चोर को चोर न कहे। अर्थात् दूसरों को दुःख पहुचाने वाली सत्य भाषा भी नहीं बोलनी चाहिए। .. तप के दो भेद किये गये हैं - बाह्य तप और आभ्यन्तर तप। बाह्य तप के छह भेद हैं - यथा - अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता।
आभ्यन्तर तप के भी छह भेद हैं - प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग।
यहाँ पर इन तपों की विवक्षा नहीं की गयी है। इसलिये अपेक्षा विशेष से यह कहा गया है कि नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्तियों से युक्त ब्रह्मचर्य तपों में श्रेष्ठ तप है।
. उपरोक्त दृष्टान्त देकर शास्त्रकार फरमाते हैं कि इसी तरह सब लोक में उत्तम रूप सम्पत्ति तथा सबसे उत्कृष्ट शक्ति और क्षायिक ज्ञान, दर्शन, चारित्र के द्वारा श्रमण भगवान् महावीरस्वामी सब में प्रधान हैं।
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