Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
ठिईण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुहम्मा व सभाण सेठ्ठा। . णिव्याणसेट्ठा जह सव्व-धम्मा, ण णायपुत्ता परमत्यि णाणी॥ २४ ॥
कठिन शब्दार्थ-ठिईण- स्थिति वालों में, लक्सत्तमा - लव सप्तम देव, सभाण- सभाओं में, सुहम्मा सभा - सुधर्मा सभा, सव्वधम्मा - सभी धर्मों में, णिव्याणसेट्ठा - निर्वाण-मोक्ष श्रेष्ठ, परमत्यि - परम-श्रेष्ठ है ।
भावार्थ - जैसे सब स्थिति वालों में पांच अनुत्तर विमानवासी देवता श्रेष्ठ हैं तथा जैसे सब सभाओं में सुधर्मा सभा श्रेष्ठ हैं एवं सब धर्मों में जैसे निर्वाण (मोक्ष) श्रेष्ठ हैं इसी तरह सब ज्ञानियों में भगवान् महावीर स्वामी श्रेष्ठ हैं ।
विवेचन - अनुत्तर विमान-वासी देवों को 'लवसप्तम' इसलिये कहते हैं कि अगर अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने के पहले के मनुष्य भव में उनका सात लव मात्र आयुष्य अधिक होता तो (७ लव-मुहूर्त का ग्यारहवां हिस्सा अर्थात् ४ मिनिट से कुछ अधिक) वे उसी भव में सिद्ध हो जाते ऐसा कहा जाता है । एक मात्र सात लव जितने समय की कमी के कारण, तेत्तीस सागर से अधिक काल का उनके मुक्त होने में विरह हो जाता है अर्थात् वे मुक्ति के समीप का, बाह्य साधनों से-भौतिकता से रहित बहुत कुछ आत्मिक सुख का अनुभव करते हैं । अतः अधिक स्थिति वालों में वे स्वाभाविक ही
श्रेष्ठ हैं।
प्रश्न - लव किसे कहते हैं ? .
उत्तर - अनुयोगद्वार के अन्दर कालानुपूर्वी अधिकार में गणित योग्य काल परिमाण के ४६ भेद बतलाये गये हैं । वे इस प्रकार हैं - १. समय - काल का सूक्ष्मतम भाग २. आवलिका - असंख्यात समय की एक आवलिका होती है ।३. उच्छवास - संख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास होता है । ४. निः श्वास - संख्यात आवलिका का एक निःश्वास होता है । ५. प्राण - एक उच्छ्वास और निःश्वास का एक प्राण होता है । ६. स्तोक - सात प्राण का एक स्तोक होता है । ७. लव - सात स्तोक का एक लव होता है । ८. मुहूर्त - ७७ लव या ३७७३ प्राण का एक मुहूर्त होता है । ९. अहोरात्र - तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र होता है ।
- भगवती सूत्र के चौदहवें शतक के सातवें उद्देशक में लवसप्तम देवों का वर्णन है । वहां यह भी बतलाया गया है कि श्रमण निर्ग्रन्थ षष्ठभक्त (बेला) द्वारा जितने कर्मों की निर्जरा करते हैं, उतने कर्म शेष रहने पर साधु, अनुत्तरोपपातिकपने उत्पन्न होते हैं । वहां पर लव शब्द का अर्थ दूसरा बतलाया गया है यथा - शाली (चावल), ब्रीहि, गेहूँ, जौ और जवजव आदि धान्य का एक कवलिया काटने में जितना समय लगता है, उसे 'लव' कहते हैं । ऐसे सात लव परिमाण आयुष्य कम होने से वे विशुद्ध
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