Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ६
१७९ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 मैंने तो तेरा नाक काट लिया। दूसरे कथानक में ऐसा भी लिखा है कि कार्तिक सेठ की नङ्गी पीठ पर उस परिव्राजक ने गरम-गरम खीर से भरी हुई थाली रखकर भोजन किया जिससे उसकी पीठ जल गयी और चमड़ी ऊतर गयी। तब कार्तिक सेठ के मन में विचार आयां कि यदि मैंने पहले दीक्षा ले ली होती तो आज यह दिन देखना नहीं पड़ता। इस प्रकार उसे संसार से वैराग्य हो गया वह एक हजार आठ व्यापारियों का प्रधान मुखिया था इसलिये उन सब को बुलाकर पूछा मैं तो अब दीक्षा लेना चाहता हूँ। आप लोग क्या करोगे? तब उन्होंने कहा कि आप जब दीक्षा ले रहे हैं तो हमारे लिये तो आप ही आधार हैं हम भी आपके साथ दीक्षा लेंगे। इसके बाद कार्तिक सेठ ने एक हजार आठ वणिकों (व्यापारियों) के साथ भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के पास दीक्षा ली। स्थविरों के पास १२ अङ्गों का ज्ञान किया। समय आने पर एक महीने का संथारा किया और काल के समय में काल धर्म को प्राप्त होकर पहले देवलोक का इन्द्र बना। इस इन्द्र के लिये शतकतु विशेषण लगता है। वह परिव्राजक भी अज्ञान तप करके पहले देवलोक में देव हुआ। शक्र को हाथी की सवारी करने का शौक होता है। इसलिये उस देव को वैक्रिय रूपधारी हाथी बनाकर उस पर शक्र सवारी करता है। उस हाथी का नाम एरावण या एरावत होता है। वह विभंगज्ञान द्वारा अपने पूर्वभव को देखकर बड़ा दुःखित और खेदित होता है। इस प्रकार सब हाथियों में एरावण हाथी सर्वश्रेष्ठ है। सब जंगली जानवरों में और मृगों में सिंह प्रधान होता है इसीलिये उसे मृगेन्द्र कहते हैं। सब नदियों में भरतक्षेत्र की अपेक्षा गङ्गा नदी प्रधान है। एवं आकाश में उड़ने वाले पक्षियों में वेणुदेव नामक गरुड़ प्रधान है। इसी तरह निर्वाण वादियों में भगवान् महावीर सर्वश्रेष्ठ हैं। सिद्धि क्षेत्र को निर्वाण कहते हैं अथवा सम्पूर्ण कर्मों के क्षय को निर्वाण कहते हैं । निर्वाण का यथा स्वरूप बतलाने के कारण भगवान् महावीर स्वामी निर्वाणवादियों में प्रधान है। सिद्धार्थ राजा ज्ञात वंश का था इसलिये भगवान् महावीर स्वामी को ज्ञात पुत्र कहते हैं।
जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु। खत्तीण सेटे जह दंतवक्के, इसीण सेटे तह वद्धमाणे ॥ २२ ॥.
कठिन शब्दार्थ - जोहेसु - योद्धाओं में, वीससेणे - विश्वसेन पुप्फेसु - फूलों में, अरविंद - अरविंद (कमल) खत्तीण- क्षत्रियों में, दंतवक्के - दान्तवाक्य, इसीण - ऋषियों में।
भावार्थ - जैसे यौद्धाओं में विश्वसेन प्रधान हैं तथा फूलों में जैसे अरविन्द (कमल) प्रधान है एवं क्षत्रियों में जैसे दान्तवाक्य प्रधान हैं इसी तरह ऋषियों में वर्धमान स्वामी प्रधान हैं । . विवेचन - हाथी, घोडा, रथ और पदाति (पैदल) इन चार अङ्गों वाले बल सहित जिसकी सेना है अर्थात् चतुरंगिणी सेना सहित जो हो उसको विश्वसेन कहते हैं। विश्वसेन का अर्थ चक्रवर्ती है। वह सब योद्धाओं में प्रधान है। चक्रवर्ती महान् पुण्यशाली होता है। वह जब छह खण्ड सिद्ध करने के लिये
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