Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
..
अध्ययन ३ उद्देशक.१
भावार्थ - केशलोच से पीडित और ब्रह्मचर्य पालन में असमर्थ पुरुष प्रव्रज्या लेकर इस प्रकार क्लेश पाते हैं जैसे जाल में फंसी हुई मछली दुःख भोगती है ।
विवेचन - जैसे जाल में फंसी हुई मछली खेदित होती है । इसी प्रकार संयम लेकर कायर पुरुष केशलोच और ब्रह्मचर्य पालन रूप कष्ट से घबरा कर सोचता है कि - मैं तो अब संयम रूपी जाल में फंस गया हूँ । ज्ञानी फरमाते हैं कि - संयम जाल (बन्धन) नहीं है । किन्तु कर्मबन्ध रूप जाल को काट कर अव्याबाध सुखों की प्राप्ति रूप मोक्ष का अमोघ उपाय है । ..
आयदंडसमायारे, मिच्छासंठिय भावणा । हरिस-प्पओस-मावण्णा, केइ लूसंतिऽणारिया ॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - आयदंडसमायरे (रा)- आत्मदंड समाचार-ऐसा आचार करने वाले जिससे आत्मा दंडित हो, मिच्छा संठिय भावणा - विपरीत चित्त वृत्ति वाले, हरिसप्पओसमा- वण्णा - राग द्वेष से युक्त, लूसंति - पीड़ा देते हैं, अणारिया - अनार्य पुरुष।
भावार्थ - जिससे आत्मा दण्ड का भागी होता है ऐसा आचार करने वाले तथा जिनकी चित्तवृत्ति विपरीत है और जो राग तथा द्वेष से युक्त हैं ऐसे कोई अनार्य पुरुष साधु को पीड़ा देते हैं ।
विवेचन - धर्म के द्वेषी पुरुष ही साधु को पीड़ा पहुंचाते हैं। यह उनका अज्ञान है ।
अप्पेगे पलियंतेसिं, चारो चोरो त्ति सुव्वयं ।। बंभंति भिक्खुयं बाला, कसायवयणेहि य ॥१५॥ कठिन शब्दार्थ - पलियंतेसिं - विचरते हुए, सुव्वयं - सुव्रत, कसायवयणेहि- कटु वचनों से।
भावार्थ - कोई अज्ञांनी पुरुष, अनार्य्य देश के आसपास विचरते हुए सुव्रत साधु को "यह चोर है अथवा चार-खुफिया है।" ऐसा कहते हुए रस्सी आदि से बाँध देते हैं और कटु वचन कह कर उनको पीडित करते हैं।
तत्य दंडेण संवीए, मुट्ठिणा अदु फलेण वा । णाईणं सरइ बाले, इत्थी वा कुद्धगामिणी ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - संवीए - ताडित किया हुआ, मुट्ठिणा - मुष्टि-मुक्का से, णाईणं - ज्ञातिजन को, सरइ- स्मरण करता है, कुद्धगामिणी - क्रोधित हो कर जाने वाली।
भावार्थ - उस अनार्य देश के आसपास विचरता हुआ साधु जब अनार्य पुरुषों के द्वारा लाठी मुक्का अथवा फल के द्वारा पीटा जाता है तब वह अपने बन्धु बान्धवों को उसी प्रकार स्मरण करता है जैसे क्रोधित होकर घर से निकलकर भागती हुई स्त्री अपने ज्ञातिवर्ग को. स्मरण करती है ।
विवेचन - ससुराल में रहती हुई किसी पुत्रवधू को उसके सासु श्वसुर कुछ कह देते हैं तो वह
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org