Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ४ उद्देशक १
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मांस, उक्कंते - काट लिये जाते, तेयसाभितावणाणि - अग्नि से तपाये जाते हैं, तच्छिय - छेदन करके, खार सिंचणाई - क्षार का सिंचन किया जाता है ।
.. भावार्थ - जो लोग परस्त्री सेवन करते हैं उनके हाथ पैर काट लिये जाते हैं, अथवा उनका चमड़ा और मांस काट लिये जाते हैं, तथा अग्नि के द्वारा वे तपाये जाते हैं एवं उनका अङ्ग काट कर खार के द्वारा सिञ्चन किया जाता है ।
अदु कण्ण-णासच्छेयं, कंठच्छेयणं तितिक्खंति । इति इत्थ पाव-संतत्ता, ण य बिंति पुणो ण काहिंति ॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - कण्णणासच्छेयं - कान और नाक का छेदन, कंठच्छेयणं - कंठ छेदन, तितिक्खंति - सहन करते हैं, पावसंतत्ता - पाप संतप्त-पापी पुरुष, काहिंति - करेंगे। - भावार्थ - पापी पुरुष अपने पाप के बदले कान, नाक और कण्ठ का छेदन भेदन सहन करते हैं . परन्तु यह नहीं निश्चय कर लेते हैं कि हम अब पाप नहीं करेंगे ।
सुयमेय-मेव-मेगेसिं, इत्थीवेयत्ति हु सुयक्खायं ।
एवं पिता वइत्ताणं, अदुवा कम्मुणा अवकरेंति ॥ २३॥ ..कठिन शब्दार्थ - सुयं - सुना है, इत्थीवेयत्ति हु - स्त्रीवेद (कामशास्त्र) में भी, सुयक्खायं - कहा गया है, कम्मुणा - कर्म से, अवकरेंति - अपकार करती है ।
भावार्थ - स्त्रियों का सम्पर्क बुरा है यह हमने सुना है, तथा कोई ऐसा कहते भी हैं एवं वैशिक कामशास्त्र का यही कहना है अब मैं इस प्रकार न करूंगी यह कहकर भी स्त्रियां अपकार करती है ।
अण्णं मणेण चिंतेंति, वाया अण्णं च कम्मुणा अण्णं । तम्हा ण सहहे भिक्खू, बहुमायाओ इथिओ णच्चा ॥२४॥
कठिन शब्दार्थ - अण्णं - दूसरा, मणेण - मन से, चिंतेंति - सोचती हैं, सद्दहे - श्रद्धा करे, बहुमायाओ - बहुत माया वाली ।
भावार्थ - स्त्रियां मन में दूसरा विचारती हैं और वाणी से दूसरा कहती हैं एवं कर्म से और ही करती हैं इसलिये साधु पुरुष बहुत माया करने वाली स्त्रियों को जान कर उन पर विश्वास न करे।
जुवइ समणं बूया, विचित्तलंकार-वत्थगाणि परिहित्ता। - विरता चरिस्सहं रुक्खं, धम्ममाइक्ख णे भयंतारो ॥२५॥
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