Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ४ उद्देशक २
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भावार्थ - पुत्र जन्म होना गृहस्थों का फल है उस फल के उत्पन्न होने पर स्त्री कुपित होकर अपने पति से कहती है कि इस लड़के को गोद में लो अथवा छोड़ दो । कोई कोई पुत्र के पोषण में आसक्त पुरुष ऊंट की तरह भार वहन करते हैं ।
राओ वि उट्टिया संता, दारगं च संठवंति धाई वा । .. सुहिरामणा वि ते सन्ता, वत्थधोवा हवंति हंसा वा ॥१७॥ .
कठिन शब्दार्थ - राओ वि - रात को भी उट्ठिया - उठ कर, दारगं - लडके को, संठवंति - गोद में लेते हैं, धाई वा - धात्री-धाई, सुहिरामणा - लज्जाशील, वत्थधोवा - वस्त्र धोते हैं, हंसावाधोबी की तरह ।
भावार्थ - स्त्री वशीभूत पुरुष रात में भी ऊठ कर धाई की तरह लड़के को गोद में लेते हैं वे अत्यन्त लज्जाशील होते हुए भी धोबी की तरह औरत और बच्चे का वस्त्र धोते हैं । .
एवं बहुहिं कयपुव्वं, भोगत्थाए जेऽभियावण्णा । दासे मिइ व पेसे वा, पसुभूए व से ण वा केइ ॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - भोगत्थाए - भोग के लिए, जे - जो अभियावण्णा - सावध कार्यों में आसक्त, मिइव - मृग के समान, पेसे वा - प्रेष्य के समान, पसुभूए - पशुभूत-पशु के समान । . - भावार्थ - स्त्री वशीभूत होकर बहुत लोगों ने स्त्री की आज्ञा पाली है । जो पुरुष भोग के निमित्त सावद्य कार्य में आसक्त हैं वे दास मृग क्रीतदास तथा पशु के समान हैं अथवा वे सबसे अधम तुच्छ हैं।
एवं खु तासु विण्णप्पं, संथ्रवं संवासं च वज्जेज्जा । . तज्जाइया इमे कामा, वजकरा य एवमक्खाए ॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - विणप्पं - विज्ञप्त-कहा गया है, संथवं - संस्तव-परिचय, संवासं - सहवास को, वजेज्जा - त्याग करे, वजकरा-पाप कारक, एवं-ऐसा, अक्खाए-तीर्थंकरों ने कहा है।
भावार्थ - स्त्री के विषय में पूर्वोक्त शिक्षा दी गई है इसलिये साधु स्त्री के साथ परिचय और सहवास न करे । स्त्री के संसर्ग से उत्पन्न होने वाला कामभोग पाप को उत्पन्न करता है ऐसा तीर्थंकरों ने कहा है।
एयं भयं ण सेयाय, इइ से अप्पगं णिलंभित्ता । णो इत्थिं णो पसु भिक्खू, णो सयं पाणिणा णिलिजेज्जा ।। २० ॥
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