Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ५ उद्देशक १ ।
१४५ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
१. अम्ब - नैरयिक जीवों को आकाश में ले जाकर नीचे पटक देते हैं। २. अम्बरीष - छूरी आदि से छोटे छोटे टुकड़े कर के भाड़ में पकने योग्य बनाते हैं।
३. शाम - ये काले रंग के होते हैं। ये लात घूसे आदि से नैरयिक जीवों को पीटते हैं और भयंकर स्थानों में पटक देते हैं।
४. शबल - चित्तकबरे रंग के होते हैं। जो शरीर की आंते, नसें और कलेजे को बाहर खींच लेते हैं।
५. रौद्र (भयङ्कर)- भाले आदि में पिरो देते हैं। ६. उपरौद्र (महारौद्र)- महाभयङ्कर। अङ्गोंपांगों को फाड़ डालते हैं। ७. काल- ये काले रंग के होते हैं। कढ़ाई आदि में पकाते हैं।
८. महाकाल - ये बहुत काले होते हैं। नैरयिक जीवों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर उन्हें ही खिलाते हैं।
९. असिपत्र - असि (तलवार) के आकार वाले पत्तों से युक्त वृक्षों की विक्रिया करके उनके नीचे बैठे हुए नैरयिक जीवों के ऊपर तलवार सरीखे पत्ते गिरा कर तिल सरीखे छोटे-छोटे टुकड़े कर डालते हैं। . १०. धनुष - बाणों के द्वारा नैरयिक जीवों के कान आदि अवयव काट लेते हैं।
११. कुम्भ- भगवती सूत्र में महाकाल के बाद असि दिया है। उसके बाद असि पत्र और उसके बाद कुम्भ दिया गया है। जो कुम्भियों में पकाते हैं उन्हें कुम्भ कहते हैं।
१२. वालुक - जो वैक्रिय के द्वारा बनाई हुई कदम्ब पुष्प के आकारवाली अथवा वज्र के आकारवाली बालू रेत में चणों की तरह नारकी जीवों को भूनते हैं।
१३. वैतरणी - जो असुर गरम मांस, रुधिर, राध, ताम्बा, सीसा आदि गर्म पदार्थों से उबलती हुई नदी में नारकी जीवों को फैंक कर उन्हें तैरने के लिये कहते हैं वे वैतरणी कहलाते हैं।
१४. खरस्वर - जो वज्र कण्टकों से व्याप्त शाल्मली वृक्ष पर नारकों को चढाकर कठोर स्वर करते हुए अथवा करुण रुदन करते हुए नारकी जीवों को खींचते हैं।
१५. महाघोष - जो डर से भागते हुए नारकी जीवों को पशुओं की तरह बाड़े में बन्द कर देते हैं तथा जोर से चिल्लाते हुए उन्हें वहीं रोक रखते हैं वे महाघोष कहलाते हैं।
पूर्व जन्म में क्रूर क्रिया तथा संक्लिष्ट परिणाम वाले सदा पाप में लगे हुए भी कुछ जीव पंचाग्नि तप तपना आदि अज्ञान पूर्वक किये गये काया क्लेश से आसुरी (राक्षसी) गति को प्राप्त करते हैं। वे परमाधार्मिक देव कहलाते हैं। वे तीसरी नारकी तक जाकर नैरयिक जीवों को कंष्ट देते हैं। जिस तरह यहाँ पर कुछ मनुष्य भैंसा, मेंढा, कुत्ता आदि के युद्ध को देख कर खुश होते हैं उसी तरह परमाधार्मिक
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