Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 जानने वाला सम्यग्दृष्टि मुनि उन अन्यतीर्थियों को यथार्थ बात की शिक्षा देता हुआ यह कहता है कि आप लोगों ने जिस मार्ग को स्वीकार किया है वह युक्तिसङ्गत नहीं है तथा आप सम्यग्दृष्टि साधुओं पर जो आक्षेप करते हैं वह भी बिना विचारे करते हैं एवं आपका आचार व्यवहार भी . विवेक से रहित है । . एरिसा जा वइ एसा, अग्गवेणु व्व करिसिया ।
गिहिणो अभिहडं सेयं, भुंजिलं ण उ भिक्खुणं ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - अग्गवेणु देव - बांस के अग्र भाग की तरह, करिसिया - कृश-दुर्बल, गिहिणो - गृहस्थों के द्वारा, अभिहडं- लाया हुआ ।
भावार्थ - साधु को गृहस्थ के द्वारा लाया हुआ आहार खाना कल्याणकारी है परन्तु साधु के द्वारा लाया हुआ आहार खाना कल्याणकारी नहीं है यह कथन युक्ति रहित होने के कारण इस प्रकार दुर्बल है जैसे बांस का अग्रभाग दुर्बल होता है ।
विवेचन - गाथा क्रमाङ्क १४ और १५ में गोशालक मतानुयायी और दिगम्बर मतानुयायियों को राग द्वेष रहित पुरुष के द्वारा शिक्षा दी जाती है, कि आप लोगों ने जो यह मार्ग स्वीकार किया है कि साधु को अपरिग्रही होने के कारण धर्म के उपकरण वस्त्र पात्र आदि नहीं रखने चाहिये और उसी कारण साधु को परस्पर एक दूसरे की सेवा भी नहीं करनी चाहिये यह आपका मार्ग युक्ति संगत नहीं । है। क्योंकि बीमार साधु को गृहस्थी ला कर आहार दे और साधु ला कर न दे, यह कथन वीतराग भगवान् के कथन से विरुद्ध है । क्योंकि गृहस्थों के द्वारा लाया आहार जीवों की घात के साथ होता है । इसलिये अशुद्ध है । पर साधुओं के द्वारा लाया हुआ आहार उद्गम आदि दोष रहित होने के कारण शुद्ध है।
धम्म-पण्णवणा जा सा, सारंभाणं विसोहिया । ण उ एयाहिं दिट्ठीहि, पुदमासी पग्गप्पियं ॥ १६॥
कठिन शब्दार्थ - धम्मपण्णवण्णा - धर्म प्रज्ञापना- धर्म देशना, सारंभाणं - आरम्भ सहितगृस्थों का, विसोहिया - शुद्ध करने वाली, एयाहिं - इन, दिट्ठीहिं - दृष्टियों से, पग्गप्पियं- प्रकल्पित कही गयी है ।
भावार्थ - साधुओं को दान आदि दे कर उपकार करना चाहिये यह जो धर्म की देशना है वह गृहस्थों को ही पवित्र करने वाली है साधुओं को नहीं, इस अभिप्राय से पहले यह धर्म की देशना नहीं की गई थी।
विवेचन - रोगी साधु को आहारादि लाकर देना आदि सेवा गृहस्थ को करनी चाहिये, साधु को
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