Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ उद्देशक ४
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1000000000000000000000००००० एवमेगे उ पासत्था, पण्णवेंति अणारिया । .. इत्थी वसं गया बाला, जिणसासणपरंमुहा ॥९॥
कठिन शब्दार्थ - पासत्था - पार्श्वस्थ, इत्थी - स्त्री, वसं - वश में, गया - रहे हुए, जिणसासणपरंमुहा - जिनशासन से पराङ्गमुख ।
भावार्थ - स्त्री के वश में रहने वाले अज्ञानी जैन शास्त्र से विमुख अनार्य कोई पार्श्वस्थ आगे की गाथाओं द्वारा कही जाने वाली बातें कहते हैं ।
विवेचन - जैन सिद्धान्त को नहीं जानने से अन्यमता- वलम्बियों ने यहाँ तक कह दिया है कि - प्रियादर्शनमेवास्त, किमन्यैर्दर्शनान्तरः।। प्राप्यते येन निर्वाणं, सरागेणा पिचेतसा ॥१॥
अर्थ - मुझे मेरी प्रिया का दर्शन होना चाहिये। दूसरे दर्शनों से मुझे क्या प्रयोजन है ? क्यों कि प्रिया के दर्शन से सराग चित्त के द्वारा भी निर्वाण सुख प्राप्त होता है। यह उन अज्ञानियों की अज्ञानता पूर्ण मान्यता है।
जहा गंडं पिलागं वा, परिपीलेज मुहुत्तगं । · एवं विण्णवणित्थीसु, दोसो तत्थ कओ सिया ? ॥१०॥ - कठिन शब्दार्थ - गंडं - फुसी को, पिलागं - फोडे को परिपीलेज - दबावे, विण्णवणित्थीसुस्त्रियों के प्रार्थना करने पर, दोसो - दोष, कओ (कुओ) - कैसे.। ___भावार्थ - वे अन्यतीर्थी कहते हैं कि - जैसे फुन्सी या फोडे को दबाकर उसके मवाद निकाल देने से थोड़ी देर के बाद ही सुखी हो जाते हैं इसी तरह समागम की प्रार्थना करने वाली स्त्री के साथ समागम करने से थोड़ी देर के बाद ही खेद की शान्ति हो जाती है अतः इस कार्य में दोष कैसे हो सकता है ?
जहा मंधादणे णाम, थिमियं भुंजइ दगं । एवं विण्णवणित्थीस, दोसो तत्थ को सिया ?॥११॥
कठिन शब्दार्थ - मंधादणे - मेंढा (भेड) थिमियं - स्तिमित-बिना हिलाये भुजइ - पीती है, दगं- पानी को।
भावार्थ - जैसे भेड़ बिना हिलाये जल पीता है ऐसा करने से किसी जीव का उपघात न होने से उसको दोष नहीं होता है, इसी तरह समागम के लिये प्रार्थना करने वाली युवती स्त्री के साथ समागम करने से किसी को पीडा न होने के कारण कोई दोष नहीं होता है, यह वे अन्यतीर्थी कहते हैं ।
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