Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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भावार्थ - साधु समाचारी को पालन करने के लिए आचार्य आदि से प्रेरित किए हुए अज्ञानी जीव उस साधु समाचारी का पालन नहीं कर सकते हुए संयम को त्याग देते हैं जैसे ऊंचे मार्ग में दुर्बल बैल गिर जाते हैं ।
अध्ययन ३ उद्देशक २
अचयंता व लूहेणं, उवहाणेण तजिया ।
तत्थ मंदा विसीति, उज्जाणंसि जरग्गवा ॥ २१ ॥
कठिन शब्दार्थ - अचयंता
असमर्थ लूहेणं - रूक्ष संयम को उवहाणेण - उपधान-तप से तज्जिया - पीडित, जरग्गवा बूढा बैल ।
भावार्थ- संयम को पालन करने में असमर्थ और तपस्या से भय पाते हुए अज्ञानी जीव, संयम मार्ग में इस प्रकार क्लेश पाते हैं जैसे ऊंचे मार्ग में बूढ़ा बैल कष्ट पाता है ।
विवेचन - गाथा क्रमांक २० और २१ वीं गाथां में "उज्जाण' शब्द दिया है जिसका प्रचलित एवं सामान्य अर्थ होता है 'उद्यान' अर्थात् बगीचा । परन्तु यहां पर टीकाकार ने उज्जाण-उद्यान शब्द का अर्थ इस प्रकार किया है
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'उत्- ऊर्ध्वं यानं उद्यानं मार्गस्य उन्नतो भाग उट्टङ्ग इति अर्थ ः '
अर्थ - मार्ग के ऊंचे भाग को उद्यान कहते हैं अर्थात् पर्वत पर चढ़ाई आदि ऊंचे मार्ग को एवं विषम मार्ग को उद्यान कहते हैं ।
गाथा में 'लूह' - रूक्ष - शब्द दिया है जिसका अर्थ संयम किया गया है । क्योंकि संयम इन्द्रियों का निग्रह रूप होने से नीरस है ।
गाथा में 'भिक्खुचरिया' शब्द का अर्थ भिक्षु चर्या दिया है जिसका अर्थ है इच्छाकार, मिच्छाकार आदि साधु की दस प्रकार की समाचारी का पालन करना तलवार की धार के समान कहा गया है । गुरु महाराज के द्वारा इस समाचारी का पालन करने के लिये प्रेरणा किये जाने पर कई अज्ञानी और कायर पुरुष संयम पालन करने में ढीले हो जाते हैं और चिन्तामणी के तुल्य संयम को ही छोड़ देते हैं । इस विषय में शास्त्रकार ने दृष्टान्त दिया है कि जैसे महान् भार से दबे हुए निर्बल बैल ऊंचे स्थान की चढ़ाई में गर्दन को नीचा कर बैठ जाते हैं । वे उस उठाये भार को वहन करने में समर्थ नहीं होते हैं। इसी तरह अज्ञानी कायर साधक ग्रहण किये हुए पांच महाव्रत रूपी भार को वहन करने में असमर्थ होकर संयम को छोड़ देते हैं ।
एवं णिमंतणं लद्धुं मुच्छिया गिद्ध इत्थीसु ।
अझोववण्णा कामेहिं, चोइज्जता गया गिहं ॥ त्ति बेमि ।
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