Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१०६
श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - लद्धं- पाकर, अज्झोववण्णा - अध्युपपन्न-दत्तचित्त-आसक्त चोइज्जंताप्रेरित किये हुए, गिहं - गृह को, गया - चले गये ।
भावार्थ - पूर्वोक्त प्रकार से भोग भोगने का आमंत्रण पाकर कामभोग में आसक्त, स्त्री में मोहित एवं विषय भोग में दत्तचित्त पुरुष, संयम पालन के लिए गुरु आदि के द्वारा प्रेरित होकर फिर गृहस्थ बन जाते हैं।
त्ति बेमि - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे आयुष्मन् जम्बू ! जैसा मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के मुखारविन्द से सुना है वैसा ही मैं तुम्हें कहता हूँ ।
॥ इति दूसरा उद्देशक ॥
तीसरा उद्देशक जहा संगाम कालम्मि, पिट्ठओ भीरु वेहइ । वलयं गहणं णूमं, को जाणइ पराजयं ॥१॥
कठिन शब्दार्थ - संगाम कालम्मि - संग्राम-युद्ध के समय में, पिट्ठओ - पीछे की ओर, भीरु - कायर, वेहइ - देखता है, वलयं - गड्ढा, गहणं - गहन स्थान, णूमं - गुफा आदि छिपा हुआ स्थान, जाणइ - जानता है, को - कौन, पराजयं - पराजय को ।
भावार्थ - जैसे कायर पुरुष, युद्ध के समय पहले आत्मरक्षा के लिए गड्ढा, गहन और छिपा हुआ स्थान देखता है । वह सोचता है कि युद्ध में किसका पराजय होगा यह कौन जानता है ? अतः संकट आने पर उक्त स्थानों में आत्मरक्षा हो सकती है इसलिए पहले छिपने के स्थान देख लेता है ।
मुहुत्ताणं मुहंत्तस्स, मुहुत्तो होइ तारिसो । पराजियाऽवसप्पामो, इइ भीरु उवेहइ ॥२॥
कठिन शब्दार्थ - मुहुत्ताणं - मुहूत्र्तों में, मुहुत्तस्स - मुहूर्त का, तारिसो - कोई ऐसा, अवसप्पामोछिप सकें, उवेहइ - देखता है ।
भावार्थ - बहुत मुहूर्तों का अथवा एक ही मुहूर्त का कोई ऐसा अवसर विशेष होता है जिसमें जय या पराजय की संभावना रहती है इसलिए "हम पराजित होकर जहां छिप सकें" ऐसे स्थान को कायर पुरुष पहले ही सोचता है अथति छिपने के स्थान का विचार कर लेता है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org