Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ उद्देशक १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
अप्पेगे पडिभासंति, पडि-पंथिय-मागया । पडियारगया एए, जे एए एव जीविणो ॥९॥
कठिन शब्दार्थ-पडिभासंति - कहते हैं, पडिपंथियमागया- प्रातिपथिकमागत-साधु के द्वेषी, पडियारगया - प्रतीकार गता-पूर्वकृत पाप कर्म का फल भोगने वाले ।
भावार्थ - साधु के द्रोही पुरुष साधु को देखकर कहते हैं कि भिक्षा मांग कर जीवन निर्वाह करने वाले ये लोग अपने पूर्वकृत पाप कर्म का फल भोग रहे हैं।
_ विवेचन - साधुता के स्वरूप को न जानने वाले अज्ञानी पुरुष इस प्रकार कह देते हैं कि - भिक्षा के लिये दूसरों के घरों में घूमने वाले अन्त प्रान्त भोजी, दिया हुआ आहार लेने वाले, सिर का लोच करने वाले सब सोसारिक भोगों से वंचित रह कर दुःख मय जीवन व्यतीत करने वाले जो ये साधु लोग हैं वे अपने पूर्व कृत पापकर्म का फल भोगते हैं। इस प्रकार वे अज्ञानी पुरुष पापकर्म का बन्ध करते हैं।
अप्पेगे वइं जुंजंति, णगिणा पिंडोलगाहमा । मुंडा कंडू विणटुंगा, उज्जल्ला असमाहिया ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ- जंजंति - कहते हैं, णगिणा (णिगिणा)- नंगे, पिंडोलगा - परपिंडार्थी, अहमा - अधम, मुंडा - मुंडित, कंडू - खुजली, विणट्ठगा - नष्ट अंग वाले, उज्जल्ला - मल युक्त।
भावार्थ - कोई अज्ञानी द्वेषी पुरुष, जिनकल्पी आदि साधु को देखकर कहते हैं कि "ये नंगे हैं, परपिंडार्थी (भिक्षा मांग कर लाने वाले) हैं तथा अधम हैं । ये लोग मुंडित (अपशकुन करने वाले) तथा कंडुरोग (खुजली) से नष्ट अंग वाले, मल से युक्त बीभत्स (डरावने) हैं और दूसरों को असमाधि (पीड़ा) पहुँचाने वाले हैं ।
- विवेचन - गाथा में 'उजल्ला' शब्द दिया है जिसका अर्थ इस प्रकार है - 'उत जल्ल, उत् गतः जल्ल-शुष्कप्रस्वेदो येषां ते उज्जल्लाः ।' शरीर पर जमा हुआ मैल पसीना आने से वह वापिस गीला बना हुआ। जैन मुनि जीवन पर्यन्त स्नान नहीं करते। . एवं विप्पडिवण्णेगे, अप्पणा उ अजाणया ।
तमाओ ते तमं जंति, मंदा मोहेण पाउडा ॥११॥
कठिन शब्दार्थ-विप्पडिवण्णा- विप्रतिपन्नक-द्रोह करने वाले, एगे-कितनेक, तमाओ- अज्ञान रूप अंधकार से, तमं - अंधकार (अज्ञान) में ही, जंति - जाते हैं, पाउडा - प्रावृत-ढके हुए।
भावार्थ - इस प्रकार साधु से और सन्मार्ग से द्रोह करने वाले स्वयं अज्ञानी, जीव मोह से ढके हुए मूर्ख हैं और वे एक अज्ञान से निकलकर दूसरे अज्ञान रूपी अंधकार में प्रवेश करते हैं।
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