Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ ఆ00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - मायरं - माता. को, पियरं - पिता को, लोइयं- लौकिक-लोकाचार, पालंति (पोसेंति)- पालन करते हैं।
भावार्थ - हे पुत्र ! अपने माता पिता का पालन करो । माता पिता के पालन करने से ही तुम्हारा परलोक सुधरेगा । जगत् का यही आचार है और इसीलिए लोग अपने माता पिता का पालन करते हैं।
उत्तरा महुरुल्लावा, पुत्ता ते ताय ! खुड्डया । भारिया ते णवा ताय ! मा सा अण्णं जणं गमे ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - उत्तरा - प्रधान, उत्तम, महुरुल्लावा - मधुरालाप-मधुरभाषी, खुड्डया - छोटे, णवा - नव यौवना ।
भावार्थ - हे तात ! एक एक कर के आगे पीछे जन्मे हुए तुम्हारे लड़के मधुरभाषी और अभी छोटे हैं। तुम्हारी स्त्री भी नवयौवना है वह किसी दूसरे के पास न चली जाय।
विवेचन - छोटे छोटे बच्चों का पालन पोषण करना पिता का कर्तव्य है तथा यौवन अवस्था में स्त्री की रक्षा करना पति का कर्तव्य है। क्योंकि यदि वह उन्मार्ग गामिनी हो जाय तो महान् लोकापवाद का कारण बनता है । अत: घर में रह कर इन सब का पालन पोषण करो, यही गृहस्थ धर्म है।
एहि ताय ! घरं जामो, मा य कम्म सहा वयं । बितियं पि ताय ! पासामो, जामु ताव सयं गिहं ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - एहि - आवो, जामो - चलें, कम्म सहा- कर्म करने में सहायक, बिइयं पिदूसरी बार ।
भावार्थ - हे तात ! आओ घर को चलें । अब से तू कोई काम मत.करना। हम लोग तुम्हारा सब काम कर दिया करेंगे । एक बार काम से घबरा कर तू भाग आया है परंतु अब दूसरी बार हम लोग तुम्हारा सब काम कर देंगे; आओ हम अपने घर चलें ।
गंतुं ताय ! पुणो गच्छे, ण तेणासमणो सिया । अकामगं परिक्कम, को ते वारेउ-मरिहइ ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - गंतुं - जा कर, असमणो - अश्रमण, अकामगे - इच्छा रहित होकर, परिक्कम - पराक्रम-कार्य करते हुए, वारेउं - निवारण करने के लिये, अरिहइ - समर्थ हो सकता है ।
भावार्थ - हे तात ! एक बार घर चलकर फिर आजाना ऐसा करने से तू अश्रमण (असाधु) नहीं हो सकता है । घर के कार्य में इच्छा रहित तथा अपनी रुचि के अनुसार कार्य करते हुए तुम को कौन निषेध कर सकता है ? अथवा जवान अवस्था में घर का कार्य करके माता पिता की सेवा तथा बच्चों का पालन पोषण करके वृद्धावस्था आने पर फिर संयम अंगीकार कर लेना तुम्हें कौन रोक सकता है ।
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