Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन ३ उद्देशक २ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - प्रतिकूल उपसर्ग कहने के पश्चात् अब अनुकूल उपसर्ग कहे जाते हैं । ये अनुकूल उपसर्ग बड़े सूक्ष्म होते हैं । साधु पुरुष, बड़ी कठिनाई के साथ इन उपसर्गों को पार कर पाते हैं। परंतु कई पुरुष इन उपसर्गों के कारण कायर और शिथिल बन जाते हैं वे संयम जीवन को निर्वाह करने में समर्थ नहीं होते हैं।
विवेचन - प्रतिकूल उपसर्ग धर्मद्वेषी पुरुषों के द्वारा दिये जाते हैं और वे प्रकट रूप से बाह्य शरीर को पीडित एवं विकृत करते हैं। इसलिये उनको स्थूल उपसर्ग कहते हैं। अनुकूल उपसर्ग अपने मित्र स्नेही बन्धु बान्धवों द्वारा दिये जाते हैं । ये शरीर को नहीं किन्तु चित्त को विकृत करते हैं । इसलिये इनको आन्तरिक और सूक्ष्म तथा दुस्तर कहा है । अनुकूल उपसर्ग आने पर अल्प पराक्रमी साधक शिथिल विहारी अर्थात् संयम पालन में ढीले हो जाते हैं अथवा सर्वथा संयम को छोड़ देते हैं ।
अप्पेगे णायओ दिस्स, रोयंति परिवारिया । पोस णे ताय ! पुट्ठोऽसि, कस्स. ताय! जहासि णे ॥२॥ , कठिन शब्दार्थ - परिवारिया - घेर कर, पोस - पालन करो, पुट्ठो - पालन किया है, जहासि - छोड़ रहे हो।
. भावार्थ - साधु के परिवार वाले, साधु को देखकर उसे घेरकर रोने लगते हैं और कहते हैं कि हे तात ! तू किसलिए हमें छोड़ता है ? हमने बचपन से तुम्हारा पालन किया है इसलिए अब तू हमारा पालन कर ।
विवेचन - दीक्षा लेने वाले अथवा दीक्षा लिये हुए पुरुष को उसके माता पिता आदि स्वजन स्नेही कहते हैं कि - हे पुत्र ! हमने बचपन से लेकर अब तक तुम्हारा पालन पोषण इसलिये किया है कि - 'वृद्धावस्था में तुम हमारी सेवा करोगे । अतः अब तुम हमारा पालन करो । तुम किस कारण से अथवा किसके आश्रय से हमें छोड़ रहे हो । हे पुत्र ! तुम्हारे सिवाय दूसरा हमारा कोई रक्षक या आश्रय नहीं है ।'
पिया ते थेरओ ताय ! ससा ते खुड्डिया इमा । भायरो ते सगा ताय ! सोयरा किं जहासि णे ॥३॥ कठिन शब्दार्थ - थेरओ - स्थविर, ससा - स्वसा-बहिन, खुड्डिया - छोटी, सोयरा - सहोदर ।
भावार्थ - परिवार वाले साधु को कहते हैं कि हे तात ! यह तुम्हारे पिता वृद्ध हैं और यह तुम्हारी बहिन, अभी बच्ची है तथा ये तुम्हारे अपने सहोदर भाई हैं तू क्यों हमें छोड़ रहा है ?
मायरं पियरं पोस, एवं लोगो भविस्सइ । एवं खु लोइयं ताय ! जे पालंति य नायरं ॥४॥
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