Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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__ अध्ययन २ उद्देशक २
७३ 00000000000000००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
भावार्थ - जो साधु कलह करने वाला है और प्रकट ही कठोर वाक्य बोलता है उसका मोक्ष अथवा संयम नष्ट हो जाता है इसलिए विवेकी पुरुष कलह न करे ।
विवेचन - अधिकरण का अर्थ कलह है। कलह करने वाले मुनि का एवं दूसरे के चित्त को दुःखाने वाली कठोर और कर्कश वाणी बोलने वाले मुनि का बहुत. काल से पालन किया हुआ संयम नष्ट हो जाता है। इसलिये उसकी मुक्ति नहीं होती। अतः कलह और कर्कश वाणी का स्वत: त्याग कर देना चाहिये।
सीओदग पडिदुगुंछिणो, अपडिण्णस्स लवावसप्पिणो। सामाइयमाहु तस्स जं जो, गिहिमत्तेऽसणं ण भुंजइ ॥ २० ॥
कठिन शब्दार्थ - सीओदगपडिदुगुंछिणो - शीतोदकप्रति-जुगुप्सक-कच्चा पानी पीने से घृणा करने वाला, अपडिण्णस्स - अप्रतिज्ञ-प्रतिज्ञा-निदान नहीं करने वाला, लवावसप्पिणो - कर्मबंध के कारणों से दूर रहने वाला, गिहिमत्ते - गृहस्थ के पात्र में ।
भावार्थ - जो साधु कच्चा पानी से घृणा करता है और किसी प्रकार की कामना नहीं करता है तथा कर्मबन्धन कराने वाले कार्यों का त्याग करता है सर्वज्ञ पुरुषों ने उस साधु का समभाव कहा है तथा जो साधु गृहस्थों के पात्र में आहार नहीं खाता है उसका भी सर्वज्ञों ने समभाव कहा है । .. ण य संखय माहु जीवियं, तह वि य बालजणो पगब्भइ।
बाले पावेहि मिज्जइ, इइ संखाय मुणी ण मज्जइ ।२१।
कठिन शब्दार्थ - संखयं - संस्कार (जोड़ने) योग्य, बालजणो - मूर्ख जीव, पगभइ - धृष्टता करता है, मिजइ - माना जाता है, मज्जइ - मद करता है ।
भावार्थ - टूटा हुआ मनुष्यों का जीवन फिर जोड़ा नहीं जा सकता है, यह सर्वज्ञों ने कहा है तथापि मूर्ख, जीव, पाप करने में धृष्टता करता है । वह अज्ञ पुरुष, पापी समझा जाता है यह जान कर मुनि, मद नहीं करते हैं । .. विवेचन - जिस प्रकार टूटा हुआ डोरा फिर जोड़ दिया जाता है। उस तरह से टूटा हुआ आयुष्य फिर नहीं जोड़ा जा सकता इसलिये जब तक आयुष्य न टूटे तब तक ही धर्मध्यान कर लेना चाहिये।
छंदेण पले इमा पया, बहुमाया मोहेण पाउडा । वियडेण पलिंति माहणे, सीउण्हं वयसाहियासए॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - छंदेण - अपनी इच्छा से, पले - जाती है, पया - प्रजा; मोहेण - मोह से, . पाउडा - प्रावृत - आच्छादित, वियडेण - कपट रहित कर्म से, पलिंति - लीन होते हैं ।
भावार्थ - बहुत माया करने वाली और मोह से आच्छादित प्रजाएँ अपनी इच्छा से ही नरक
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