Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तर - अर्धमागधी भाषा में 'भगवं' या 'भयवं' शब्द आता है जिसका संस्कृत रूप भगवान्
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बनता है। भगवान् शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है
" भगं - भाग्यं विद्यते यस्य सः भगवान् "
अर्थ-भग अर्थात् भाग्य के स्वामी को भगवान् कहते हैं। भग शब्द का टीकार्थ इस प्रकार किया
गया है
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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १
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ऐश्वर्य्यस्स समग्रस्य, रूपस्य यशसः श्रियः ।
धर्मस्यार्थस्य यत्नस्य, षणां भग इतीङ्गना ॥ १ ॥
अर्थ - समग्र ऐश्वर्य, रूप, यश, लक्ष्मी, धर्म और प्रयत्न ये 'भग' शब्द के छह अर्थ हैं। इनके स्वामी को भगवान् कहते हैं। शब्दकोश में तो 'भग' शब्द के अर्थ इस प्रकार किये गये हैं
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श्रियां यशसि सौभाग्ये योनौ कान्तौ महिम्नि च ।
सूर्ये संज्ञाविशेषे च मृगाङ्केऽपि भगः स्मृतः ॥
अर्थ - श्रीलक्ष्मी, यश, सौभाग्य, योनि, कान्ति, महिमा, सूर्य, संज्ञाविशेष और चन्द्रमा । इसके सिवाय ज्ञान दर्शन आदि भी ' भग' शब्द के अर्थ किये हैं ।
।। इति तीसरा उद्देशक ॥
॥ वैतालिक नामक दूसरा अध्ययन समाप्त ॥
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