Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन २ उद्देशक १
कठिन शब्दार्थ - कालुणियाणि - करुणा मय वचन या करुणामय कार्य, कासिया - करे, दवियं - द्रव्यभूत-मोक्ष गमन योग्य, समुट्ठिय- समुत्थित- संयम पालन में तत्पर, ण संठवित्तएस्थापित नहीं कर सकते।
भावार्थ - साधु के माता पिता आदि सम्बन्धी साधु के निकट आकर यदि करुणामय वचन बोलें, या करुणा जनक कार्य करें अथवा पुत्र के लिए रुदन करें तो भी वे, संयम पालन करने में तत्पर मुक्ति गमन योग्य उस साधु को संयम से भ्रष्ट नहीं कर सकते तथा वे उन्हें गृहस्थ लिंग में नहीं स्थापन कर सकते । . विवेचन - आप स्वयं संयम में दृढ़ हैं तो उसके माता पिता स्वजन सम्बन्धी आदि उसको संयम से विचलित नहीं कर सकते हैं।
जइ वि य कामेहि लाविया, जइ णेज्जाहि णं बंधिउं घरं। ' जइ जीवियं णावकंखए, णो लब्भंति ण संठवित्तए ।। १८ ॥
कठिन शब्दार्थ - लाविया - प्रलोभन दें, जाहि - ले जायं, बंधिउं - बांध कर, ण - नहीं, अवकंखए - चाहता है।
भावार्थ - साधु के सम्बन्धी जन यदि साधु को विषय भोग का प्रलोभन दें अथवा वे साधु को बाँधकर घर ले जायँ, परन्तु वह साधु यदि असंयम जीवन की इच्छा नहीं करता है तो वे उसे अपने वश में नहीं कर सकते अथवा उसे वे गृहस्थ भाव में स्थापित नहीं कर सकते ।
सेहंति य णं ममाइणो, माया पिया य सुया य भारिया। . पोसाहिण पासओ तुमं, लोगं परं पि जहासि पोस णो॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - सेहंति - शिक्षा देते हैं, पासओ - पश्यक-सूक्ष्मदर्शी, पोसाहि - पालन करो, जहासि - छोड़ते हो। . भावार्थ - साधु को अपना पुत्र आदि जानकर उसके माता पिता पुत्र और स्त्री आदि साधु को शिक्षा देते हैं । वे कहते हैं कि हे पुत्र ! तू बड़ा सूक्ष्म दर्शी है अतः हमारा पालन करो । तू हमें छोड़कर अपना इहलोक और परलोक दोनों बिगाड़ रहे हो अतः तुम हमारा पालन करो ।
विवेचन - उन स्वजनों के कहने का यह तात्पर्य है कि यदि तुम हमारे पालन रूप छोटे कर्तव्य का भी पालन नहीं कर सकते हो अर्थात् प्रत्यक्ष की उपेक्षा करते हो तो भवपार कैसे हो सकोगे अर्थात् अप्रत्यक्ष की भी उपेक्षा कर बैठोगे। - नीतिकार कहते हैं - "या गतिः क्लेशदग्धानां गृहेषु गृहमेधिनाम्। विभ्रतां पुत्रदारांस्तु तां गतिं व्रज पुत्रक ॥" ..
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