Book Title: Suyagadanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अग्नि कभी तृप्त एवं शान्त नहीं हो सकती। इसी प्रकार भोग भोगते रहने से भोगों की तृष्णा कभी तृप्त एवं शान्त नहीं होती किन्तु विषय भोगों का त्याग कर देने से वह शान्त और तृप्त हो जाती है ।
जे यावि बहुस्सुए सिया, धम्मिय माहण भिक्खुए सिया। अभिणम-कडेहिं मुच्छिए, तिव्वं ते कम्मेहिं किच्चइ ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - बहुस्सुए - बहुश्रुत, सिया - हो, धम्मिय- धार्मिक, अभिणूमकडेहिं - * अभिणूमकृत-माया कृत अनुष्ठान में, मुच्छिए - आसक्त । .
भावार्थ - मायामय अनुष्ठान में आसक्त पुरुष चाहे बहुश्रुत (बहुत ज्ञानी) हों, धार्मिक हों, ब्राह्मण हों, चाहे भिक्षुक हों वे अपने कर्मों के द्वारा अत्यन्त पीड़ित किये जाते हैं । ..
विवेचन - कोई कितना ही बड़ा आदमी हो या ज्ञानी हो उसे अपने किये हुए कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। यथा - 'कडाण कम्माण ण मोक्ख अत्थि' अर्थात् किये हुए कर्मों का फल भोगे बिना जीव का छूटकारा नहीं होता है।
अह पास विवेगमुट्ठिए, अवितिपणे इह भासइ धुवं। णाहिसि आरं कओ परं, वेहासे कम्मेहिं किच्चइ॥ ८ ॥
कठिन शब्दार्थ - विवेगं - विवेक-छोड़ना, उट्ठिए- उत्थित प्रव्रज्या ग्रहण करना, अवितिण्णे - वे संसार सागर को पार नहीं कर सकते, धुवं - ध्रुव-मोक्ष को, णाहिसि - जान सकते हो, आरं - इस लोक को, परं - परलोक को, वेहासे - मध्य में ही, किच्चइ - पीड़ित किये जाते हैं ।
भावार्थ - हे शिष्य ! इसके पश्चात् यह देखो कि कोई अन्यतीर्थी परिग्रह को छोड़कर अथवा संसार को अनित्य जान कर प्रव्रज्या ग्रहण करके मोक्ष के लिए उद्यत होते हैं परन्तु अच्छी तरह संयम का अनुष्ठान नहीं कर सकने के कारण वे संसार को पार नहीं कर सकते हैं । वे मोक्ष का भाषण मात्र करते हैं परन्तु उसकी प्राप्ति का उपाय नहीं करते हैं । हे शिष्य ! तुम उनका आश्रय लेकर इसलोक तथा परलोक को कैसे जान सकते हो ? वे अन्यतीर्थी उभयभ्रष्ट होकर मध्य में ही कर्म के द्वारा पीड़ित किये जाते हैं। ... विवेचन - ज्ञान दर्शन, चारित्र इन तीन की संयुक्त त्रिपुटी से ही अर्थात् सम्मिलित रूप से ही. मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। जैसा कि उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है -
णाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीया गच्छंति सुग्गइं॥ - उत्तराध्ययन सूत्र अ. २८ गाथा ३ तत्त्वार्थ सूत्र में भी कहा है - "सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org